एएमयू
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में एक नहीं बल्कि दो तराना है। एक यूनिवर्सिटी का और दूसरा मौलाना आजाद पुस्तकालय का तराना है। पुस्तकालय का तराना वर्ष 2008 में डॉ. मुअज्जम खां ने लिखा था। एएमयू के अलावा भारत के किसी भी विश्वविद्यालय में पुस्तकालय का तराना नहीं है।
पुस्तकालय तराना 10 बंद का है, जिसमें 60 पंक्तियां हैं। पुस्तकालय को उर्दू में कुतुबखाना कहते हैं। एएमयू के संगीत विभाग के संगीतकार रहे जॉनी फॉस्टर ने बताया कि वर्ष 2010 में पुस्तकालय के गोल्डन जुबली समारोह पर तराना को संगीत का लिबास पहना कर उसे रिकॉर्ड भी किया गया, जिसकी अवधि 17 मिनट है। तराना को उन्होंने स्वयं और संगीत के शौकीन विद्यार्थियों ने आवाज दी। एशिया के सबसे बड़े और मशहूर पुस्तकालय की खासियतें तराने में बताई गई हैं। यह तराना पुस्तकालय में प्रवेशद्वार पर बायीं ओर अंकित किया गया है।
तराना की पंक्तियां
ऐ कुतुबगाहे-अलीगढ़ तू हमारी शान है
तू कुतुबखाना नहीं है इल्म की पहचान है
कायनाते फिक्र है दानिश कदे की जान है
तू किताबें इल्म-ए-यज्दां का हसीं जुजदान है
तेरे आगे दीद-ए-फहम-ओ-जलाए हैरान है
ऐ कुतुबगाहे अलीगढ़ जू हमारी शान है
बहर तकदीरे खिर्द का पुरसूकूं साहिल है तू
पैकरे इंसानियत का खूबसूरत दिल है तू
सरवरे कौनेन के इजहाब की महफिल है तू
तेरे दामन में अली के हाथ का कुरान है
ऐ कुतुबगाहे अलीगढ़ तू हमारी शान है
14 लाख से ज्यादा किताबें व दुर्लभ पांडुलिपियां
मौलाना आजाद पुस्तकालय में 14 लाख से ज्यादा किताबें और दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। सात मंजिला पुस्तकालय की बुनियाद वर्ष 1877 में वायसराय लॉर्ड लिटन ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना के समय रखी गई थी। वर्ष 1960 में पुस्तकालय का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। पुस्तकालय का नाम देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के नाम पर रखा गया। पुस्तकालय में उर्दू, फारसी, संस्कृत और अरबी भाषाओं में दुर्लभ पांडुलिपियों और पुस्तकों का विश्व प्रसिद्ध भंडार है। इस्लाम, हिंदू धर्म आदि पर दुर्लभ और अमूल्य पांडुलिपियां हैं। कुरान की एक प्रति 1400 वर्ष से अधिक पुरानी है। अबुल फैज फैजी ने श्रीमद्भागवत गीता का फारसी अनुवाद है।