Asian Games: पदक से चूकीं गजरौला की दीक्षा पर प्रतिभा से जीता दिल, नतीजा जानने के लिए टीवी से चिपके रहे लोग

Asian Games: पदक से चूकीं गजरौला की दीक्षा पर प्रतिभा से जीता दिल, नतीजा जानने के लिए टीवी से चिपके रहे लोग



गजरौला की दीक्षा ने एशियन गेम्स में किया प्रतिभाग
– फोटो : सोशल मीडिया

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चीन के हांगझोऊ में चल रहे एशियन गेम्स में दीक्षा पदक से तो चूक गईं मगर उन्होंने अपनी प्रतिभा से लोगों का दिल जीत लिया। उनके पदक नहीं पाने से परिजन और गांव के लोग थोड़ा सा मायूस हैं लेकिन इस बात की खुशी ज्यादा है कि उनके गांव की बेटी एशियन गेम्स में प्रतिभाग कर रही है।

प्रतियोगिता देखने और परिणाम जानने के लिए गांव और जिले में लोग टीवी से चिपके रहे। दूरस्थ इलाके में बसे छोटे से गांव शादपुर निवासी किसान नरवीर सिंह की बेटी कुमारी दीक्षा ने चीन के हांगझोऊ में हो रहे एशियन गेम्स में 15 सौ मीटर दौड़ में प्रतिभाग किया।

उनके गोल्ड मेडल के लिए गजरौला ही नहीं तमाम लोग दुआ कर रहे थे। दीक्षा की मां राकेश उर्फ गुड्डी, चाची पिंकी, दादी दुलारी देवी ने शिव मंदिर में काफी देर तक पूजा अर्चना की। गांव की प्रधान पिंकी ने परिजनों प्रदीप सिंह के साथ मिल कर घर पर पूजा की।

गजरौला में मेडिकल स्टोर और दुकानों पर लोगों ने टीवी चलाकर प्रतियोगिता देखी। शाम को 5.50 बजे दौड़ना शुरू किया, जबकि लोग साढ़े पांच बजे ही काम निपटाकर टीवी खोल कर बैठ गए। गांव का युवा वर्ग मोबाइल पर प्रतियोगिता देखने में लगा रहा।

मगर उस वक्त मायूस हो गए, जब पता चला कि कुमारी दीक्षा मेडल से चूक गईं हैं। उनके भाई रॉबिन का कहना है कि वह छह अक्तूबर को गांव में आतीं, मगर अब इरादा बदल दिया है। वह सीधे भोपाल जाएंगी। दिसंबर में होने वाली प्रतियोगिता की तैयारी करेंगी।

भाई की शादी में ली थी महज दो दिन की छुटी

एशियन गेम्स तक पहुंचीं कुमारी दीक्षा दौड़ के लिए रोजाना कई घंटे पसीना बहाती थीं। उनकी मां राकेश उर्फ गुड्डी का कहना है कि किसी भी मौसम में दीक्षा ने दौड़ना नहीं छोड़ा। वह सुबह-शाम अभ्यास करतीं। बीते साल दिसंबर में वह भोपाल में तैयारी कर रही थीं। तभी इकलौते भाई रोबिन की शादी तय हुई। मगर दौड़ की तैयारी कर रहीं दीक्षा ने गांव में आने से इंकार कर दिया। जब परिजनों व रिश्तेदारों ने दबाव बनाया तो वह दो दिन के लिए गांव में आईं।

दीक्षा ने घर से 24 किमी की दूरी तय कर बहाया पसीना

कुमारी दीक्षा एशियन गेम्स में भले ही मेडल लाने से चूक गईं, लेकिन उनके संघर्ष और माता-पिता की मेहनत की हर कोई सराहना कर रहा है। उनका गांव ऐसी जगह है, जहां से सवारी में बैठने के लिए चार किमी पैदल चलना पड़ता है। वह रोजाना साइकिल से 24 किमी की दूरी कर अभ्यास करने जाती थीं।

शादपुर गांव ऐसी जगह स्थित जहां पर कोई भी संपर्क मार्ग नहीं है। धनौरा मार्ग हो या गजरौला-खादगुर्जर मार्ग, सबकी दूरी तीन से चार किमी है। उनके गांव का रास्ता कच्चा है। पढ़ाई के बाद छह किमी की दूरी तय कर कुआंखेड़ा में दौड़ का अभ्यास करने जाना पड़ता था।

दीक्षा को पुलिस में भेजना चाहती थीं मां राकेश

दौड़ में मेडल से चूक गईं दीक्षा को उनकी मां पुलिस में भेजना चाहती थीं, लेकिन बेटी द्वारा दौड़ में लगातार उपलब्धियां हासिल करने पर उनका नजरिया बदल गया। जिसका परिणाम पूरे देश के सामने है। किसान परिवार में जन्मीं दीक्षा की मां पढ़ी लिखी नहीं हैं।

उनके पिता नरवीर सिंह आठवीं तक पढ़े हैं। इंटर के बाद बेटी को आगे की पढ़ाई के लिए बिजनौर के बास्टा भेज दिया। जहां से कुमारी दीक्षा ने बीए फाइनल किया। बेटी अच्छी धावक है, इसलिए मां राकेश ने दीक्षा को भी पुलिस में भर्ती कराने की ठान ली।

मगर कुमारी दीक्षा ने 2021 में चेन्नई के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित नेशनल इंटर स्टेट सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 15 सौ मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता। 2022 में नेशनल ओपन एथलेटिक्स में 15 सौ मीटर में भी स्वर्ण पदक हासिल किया।

यह प्रतियोगिता श्रीकांतिराव आउटडोर स्टेडियम बैंगलुरू में हुई। वारंगल के हनमकोंडा स्टेडियम में आयोजित नेशनल ओपन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। जिसके बाद मां का नजरिया बदल गया। फिलहाल दीक्षा रेलवे में मध्य प्रदेश में तैनात हैं।



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