लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और राहुल गांधी।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
गांधी जयंती पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक बड़ा ड्रीम प्रोजेक्ट पूरा हुआ। जातीय जनगणना का रिकॉर्ड जारी किया गया। इसके जारी होने के तत्काल बाद कांग्रेस के नंबर वन नेता राहुल गांधी ने आवाज लगाई- “जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी।” राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने भी यही आवाज दी। बाकी जगहों पर यह कब होगा, लेकिन बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार में नीतीश सरकार इसे लागू कर दे तो प्रयोग भी हो जाएगा। प्रतिभा या अनुभव की जगह नीतीश सरकार अगर जाति के हिसाब से मंत्रिमंडल को पटरी पर लाना चाहे तो उसे बड़ा उलटफेर करना होगा। मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करना होगा। इसमें राजद की आधार जाति को ही सबसे बड़ा झटका लगेगा। कैसे, समझिए।
पहले जानिए, विधानसभा में मंत्रीपद का गणित
बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं। इनमें 15 प्रतिशत अधिकतम मंत्री हो सकते हैं। मतलब, 36 मंत्री बन सकते हैं। अभी 31 मंत्री हैं। कांग्रेस अपने 19 विधायकों के लिए चार मंत्रीपद मांग रही है। उसके दो मंत्री हैं। 23 जून को विपक्षी एकता की बैठक के पहले उसे आश्वासन मिला था कि इस तारीख के बाद विस्तार करेंगे, लेकिन आजतक हुआ नहीं। राजद के दो मंत्री हटे या हटाए जा चुके हैं। मतलब, चार मंत्रीपद तो यही हो गए। बचा एक तो वह राजद-जदयू खुद में फैसला कर सकती है। बस, देखना होगा कि जिस जाति के मंत्री की हिस्सेदारी बनती है- उसके विधायक पार्टी में हों।
मुसलमानों को एक मंत्रीपद और मिलना चाहिए
बिहार की जातीय जनगणना और सत्तारूढ़ दल के विधायकों के धर्म को देखें तो सिर्फ हिंदू और मुसलमान में ही मंत्रीपद का बंटावारा संभव है। इस जनगणना ने दिखाया है कि बिहार में मुस्लिम धर्म के लोगों की आबादी 17.7 प्रतिशत हैं। उस हिसाब से 36 में से छह मंत्रीपद इनके पास होना चाहिए। अभी पांच हैं। मतलब, एक मंत्रीपद तो इन्हें देना ही चाहिए। नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में अगड़ा मुस्लिम का प्रतिनिधित्व मो. जमा खान और डॉ. शमीम अहमद कर रहे हैं। जमा खान बसपा से जीतकर जदयू में आए हैं। डॉ. शमीम अहमद राजद से हैं। अब मुसलमानों के पिछड़ा वर्ग की बात करें तो कांग्रेसी अफाक आलम मंत्री हैं, जबकि असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम छोड़कर राजद में आए शाहनवाज आलम भी मंत्री हैं। राजद के ही मो. इसराइल मंसूरी भी हैं।