जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और वाम नेत्री सुभाषिनी अली
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किसी किताब की ऐसी बेबाक समीक्षा और वह भी विमोचन के मंच पर! वह भी, जब किताब विपक्षी एकता के संयोजक बन रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हो और लेखक उनके अभिन्न मित्र हों तो चौंकना और भी ज्यादा वाजिब है। चौंकने वाली बात यह कि विपक्षी एकता की कोशिशों के बीच आई इस किताब की बेबाक समीक्षा एक वामपंथी नेत्री ने की। साफ-साफ कहा कि अपने मित्र नीतीश कुमार के प्रति समर्पण दिखाने के चक्कर में लेखक ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को कम आंक दिया। वामपंथियों के बेतुकी बातें गढ़ दीं। वाकये को अपने चश्मे से बदल दिया। और, इन सभी के साथ यह भी आरोप जड़ दिया कि लेखक किताब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति सॉफ्ट नजर आए हैं।
किसने की ऐसी कड़ी समीक्षा, क्या-क्या कह डाला
मुख्यमंत्री के सामने उनके बारे में अतिश्योक्ति लिखे जाने का आरोप लगाने वाली वाम नेत्री सुभाषिनी अली पूर्व सांसद और जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वह मंच पर पूरी तैयारी के साथ आई थीं, मतलब किताब को पढ़-समझ कर। उन्होंने कहा- “आपके किताब की प्रशंसा बहुत होगी। हमने भी की है। लेकिन, दो-तीन चीजों की आलोचना हम जरूर करेंगे। चलिए, यह ठीक है कि नीतीश जी आपके दोस्त हैं, आपके आदर्श हैं, आपने उनके बारे में बहुत बढ़िया लिखा। लेकिन, बाकी जो आपके राजनीतिक…. मतलब कनक्लूजन हैं, जिनपर आप पहुंचे हैं, इनपर मुझे लगता है कि आप थोड़ा-सा पूर्वाग्रह से ग्रसित रहे हैं। एक तो आपने कम्युनिस्टों के बारे में पता नहीं क्या-क्या और क्यों कह दिया! आपने सीपीआई और सीपीएम के बीच फर्क ही नहीं किया।”
नीतीशजी और अपने बीच का वह वाकया नहीं बताऊंगी
सुभाषिनी अली ने कहा- “मैं यह सोच रही थी कि मुझे यहां बुलाया क्यों गया है! जब मैंने किताब को पढ़ना शुरू किया तो मजेदार बात यह है कि शुरुआती पेज पर अचानक मेरा नाम आ जाता है। मैं भी हक्काबक्का रह गई कि यह क्या हो गया! मेरी मुलाकात नीतीशजी से 30- 35 साल से नहीं हुई है। लेकिन, किताब में एक बात लिखी गई है कि उन्होंने मुझसे बहुत ज्ञान प्राप्त किया है। मुझे तो नहीं लगता है कि उन्होंने कोई ज्ञान प्राप्त किया। लेकिन, हम दोनों मिलकर खूब हंसे थे। वह बहुत गंभीर किस्म के होते थे। जब पार्लियामेंट में लोगों ने देखा कि हमारा गंभीर मंत्री और यह महिला इस तरह हंस रहे कि कुर्सी से नीचे गिर गए हंसते-हंसते। लेकिन, इसमें (किताब में) जो लिखा गया है, जो कहानी बताई गई है, वह पूरी तरह से सही नहीं है। और जो सही कहानी है वह मैं आपको बताने वाली भी नहीं हूं। हमारे और नीतीश जी के बीच का वह राज बना रहेगा।
पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लिखी गई हैं यह बातें
जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली आगे फिर हमलावर हुईं। कहा- “मुझे लगता है कि आपने जहां भी दूसरी पार्टियों और नेताओं का राजनीतिक विश्लेषण किया है, थोड़ा पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किया है। जैसा कि कम्युनिस्ट के बारे में। अब आप जेपी आंदोलन के बारे में लिख रहे हैं और लिख रहे हैं कि वाम नेता कमरे छोड़कर चले गए, भाग गए। आपकी यह बात बिल्कुल गलत है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद सीपीआई के लोग पूरी निष्ठा के साथ जेपी आंदोलन के साथ रहे। हमारे लोग भी जेल गए। और, माफ कीजिएगा लेखक महोदय, हमारी पार्टी के किसी भी साथी ने माफी नहीं मांगी जेल में जाकर। यह माफी मांगने वाले लोगों की नस्ल दूसरी है। हम लोगों के साथी जो यहां बैठे हुए हैं, उनकी नस्ल अलग है।”
यह दो कूदे तो क्रांति हो गई…ऐसा नहीं है
सुभाषिनी अली ने कहा- “ऐसा नहीं है कि जेपी आंदोलन में जैसे नीतीशजी और लालूजी कूद पड़े तो क्रांति की तस्वीर देखने लगी। उस तरह की तस्वीर हमने नहीं देखी और हम अकेले नहीं थे। आपने अपनी किताब में बहुत बढ़िया बात डाली है कि बक्सर जेल में उस समय बाबा नागार्जुन थे। वह भी बंद हुए थे इसी आंदोलन में। वह बक्सर जेल में थे और शुरू-शुरू में उन्होंने आंदोलन के समर्थन में खूब कविताएं लिखी। लेकिन, उनके साथ एक आरएसएस वाला था और उससे इतने पीड़ित हो गए कि वे आंदोलन के आलोचक बन गए। आरएसएस वाला उनपर इस कदर हावी हुआ कि उनकी आलोचना बढ़ती चली गई और आखिर में उन्होंने उस आंदोलन का नाम खिचड़ी क्रांति रख दिया। संपूर्ण क्रांति की बजाय खिचड़ी क्रांति… और शायद उन्होंने कुछ गलत भी नहीं किया। किसी को बुरा लग जाए मेरी बात का… तो यह मेरी बात नहीं। यह बाबा नागार्जुन की बात है। उनसे लड़ने का हौसला है तो आप उन्हीं से लड़िये, मुझसे मत लड़िये।”
लालू पर पूवाग्रह से ग्रसित लगते हैं आप
पूर्व सांसद ने कहा- “हम लालूजी का बहुत सम्मान करते हैं। लालूजी के बारे में भी आपका विश्लेषण पूर्वाग्रह से ग्रसित है। उनकी बहुत सारी खूबियां, उनका जलवा, उनका जुनून और उनकी दरियादिली के बारे में मुझे लगता है आपने पूरी इमानदारी इसमें नहीं की है। हमने देखा है कि नेताओं के बीच अनबन हो गई। हम भी सोचते रहे कि भाई नीतीशजी आखिर लालूजी से क्यों नाराज हुए! मुझे लगता है कि अब उस नाराजगी को भूलने का समय आ गया है क्योंकि लालूजी ने हमेशा उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और केवल दोस्ती का हाथ ही नहीं बल्कि राजनीति में बहुत कम देखने को मिलता है कि बहुत उदारता के साथ दोस्ती का हाथ उनकी तरफ बढ़ाया। उसके जो परिणाम आए, यह आज किसी से छुपे हुए नहीं है।”