चंद्रयान-3।
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भारत चंद्रयान-3 के जरिये सतह पर उतरने से महज कुछ कदम ही दूर है। इसरो ने ‘चंद्रयान-3’ को ‘चंद्रमा’ की सतह (दक्षिणी ध्रुव) पर उतारने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। 23 अगस्त की शाम को चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी। ‘चंद्रयान-3’ की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद भारत, दुनिया में रूस, अमेरिका और चीन बराबरी पर आ जाएगा। अभी तक इन्हीं तीन देशों को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने का गौरव हासिल है। भारत के इस मिशन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं।
पूरी दुनिया में चांद से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं। उनमें एक किस्सा चांद पर जमीन की खरीद-बिक्री का भी है। चंद्रयान-3 के चांद पर पहुंचने की खबरों के बीच आइए जानते हैं क्या वाकई में चांद पर जमीन खरीदना फायदे का सौदा है या फिर ये महज शिगूफा ही है? क्या भारत के चांद पर पहुंचने से चांद पर जमीन खरीदने वालों को कोई फायदा मिलेगा? चांद पर जमीन खरीदना कानूनी है या गैरकानूनी?
अक्सर इस बात को सुनने को मिलता है कि अमुक आदमी ने चांद पर जमीन खरीदी है। कभी सुपरस्टार अभिनेता शाहरूख खान का नाम, तो कभी सुशांत सिंह राजपूत का नाम चांद पर जमीन खरीदने वालों की सूची में पढ़ने को मिलता है। सुशांत सिंह राजपूत ने साल 2018 में चांद पर जमीन खरीदी थी। सुशांत ने चांद पर जमीन इंटरनेशनल लूनर लैंड्स रजिस्ट्री से खरीदी थी। उनकी यह जमीन चांद के ‘सी ऑफ मसकोवी’ में है। उन्होंने यह जमीन 25 जून 2018 को अपने नाम करवाई थी।
आखिर चांद की जमीन कौन बेच रहा है?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लूना सोसाइटी इंटरनेशन और इंटरनेशन लूनर लैंड्स रजिस्ट्री जैसी कंपनियां चांद पर जमीन बेचने का दावा करती हैं। इन कंपनियों का कहना है कि उन्हें कई देशों ने चांद पर जमीन बचने केलिए अधिकृत किया है। हालांकि इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। इन कंपनियों के जरिए 2002 में हैदराबाद के राजीव बागड़ी और 2006 में बेंगलुरू के ललित मोहता नामक के व्यक्ति ने चांद पर जमीन खरीदी थी। उनका मानना था कि चांद पर आज नहीं तो कल जीवन तो बसना ही है। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो फिलहाल चांद पर बसना दूर की कौड़ी है।
चांद का मालिकाना हक किसके पास?
कानूनी रूप से देखें तो अंतरिक्ष यानी चांद, सितारे और अन्य खगोलीय वस्तु किसी भी देश के अधीन नहीं आते। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की मानें तो चांद पर जमीन खरीदना कानूनी तौर पर मान्य नहीं है। आउटर स्पेस ट्रीटी 1967 के मुताबिक, अंतरिक्ष के किसी भी ग्रह या फिर चांद पर किसी भी एक देश या व्यक्ति का अधिकार नहीं है। भारत समेत लगभग 110 देशों ने 10 अक्तूबर 1967 को इस संबंध में एक समझौता किया था, इसे आउटर स्पेस ट्रीटी के नाम से जाना जाता है। इसके मुताबिक आउटर स्पेश में चांद भी शामिल है, जो कॉमन हरिटेज है, जिसका मतलब होता है कि इसका कोई भी निजी इस्तेमाल के लिए प्रयोग नहीं कर सकता है। कॉमन हेरिजटे पूरी मानवता के लिए होता है। ऐसे में चांद पर बेशक किसी भी देश का झंडा लगा हो, लेकिन चांद का मालिक कोई नहीं बन सकता।
चांद पर जमीन की बिक्री कानूनी या गैरकानूनी?
अंतरिक्ष पर कई पुस्तकें लिख चुके लेखक डॉ. जिल स्टुअर्ट (Dr.Jill Stuart) ने अपनी किताब ‘द मून एग्जीबिशन बुक’ में लिखा है कि चांद पर जमीन खरीदना और किसी को गिफ्ट करना एक फैशन बन गया। ऐसा तब है जबकि किसी भी देश का चांद पर कोई अधिकार नहीं है। बिना किसी अधिकार के लिए कंपनियां चांद पर जमीन की रजिस्ट्री करने का दावा करती हैं, जो कि पूरी तरह से गैरकानूनी है और एक तरह से गोरखधंधा ही है। चांद पर जमीन बेचने का कारोबार बीते कुछ वर्षों में काफी बढ़ा है।
क्या महज कागज के टुकड़े के लिए पैसे खर्च रहे लोग?
लूनर रजिस्ट्री डॉट कॉम के अनुसार चांद पर एक एकड़ जमीन की कीमत 37.50 अमेरिकी डॉलर यानी करीब 3112.52 रुपए है। कम कीमत होने के कारण लोग भावनाओं में बहकर रजिस्ट्री कराने के बारे में ज्यादा नहीं सोचते। हालांकि यह सौ फीसदी सच है कि वे चांद पर जमीन खरीदने के लिए नहीं महज कागज के एक टुकड़े के लिए पैसे चुका रहे होते हैं। उम्मीद है आपने अंदाजा लगा लिया होगा कि चंद्रयान-3 के सफलतापूर्वक चांद पर पहुंचने से देश का मान तो बढ़ेगा पर वहां जमीन खरीनेवालों को इससे कोई लाभ नहीं मिलने वाला।