Chandrayaan 3: क्या है ‘बाहुबली’ रॉकेट, जिससे भेजा जाएगा चंद्रयान-3; जानें सभी चंद्र मिशनों के बारे में

Chandrayaan 3: क्या है ‘बाहुबली’ रॉकेट, जिससे भेजा जाएगा चंद्रयान-3; जानें सभी चंद्र मिशनों के बारे में


अब तक कितनी तरह से चंद्र मिशन भेजे जा चुके हैं?
फ्लाईबायस: ये वे मिशन हैं जिनमें अंतरिक्ष यान चंद्रमा के पास से गुजरा, लेकिन उसके चारों ओर की कक्षा में नहीं पहुंच पाया। इन्हें या तो दूर से चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था या वे किसी अन्य ग्रह पिंड या अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए थे और आकाशीय पिंड के पास से गुजरे थे। फ्लाईबाय मिशन के उदाहरण अमेरिका के पायनियर 3 और 4 और तत्कालीन रूस के लूना 3 हैं।

ऑर्बिटर: ये अंतरिक्ष यान थे जिन्हें चंद्र कक्षा में जाने और चंद्रमा की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया था। भारत का चंद्रयान-1 एक ऑर्बिटर था, साथ ही विभिन्न देशों के 46 अन्य चंद्रमा मिशन भी थे। ऑर्बिटर मिशन किसी ग्रह पिंड का अध्ययन करने का सबसे आम तरीका है। अब तक केवल चंद्रमा, मंगल और शुक्र पर ही लैंडिंग संभव हो पाई है। अन्य सभी ग्रह पिंडों का अध्ययन ऑर्बिटर या फ्लाईबाई मिशनों के माध्यम से किया गया है। चंद्रयान-2 मिशन में एक ऑर्बिटर भी शामिल था, जो अभी भी चल रहा है और लगभग 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है।

इम्पैक्ट मिशन: ये ऑर्बिटर मिशन का विस्तार है। जब मुख्य अंतरिक्ष यान चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है, उस पर लगे एक या अधिक उपकरण चंद्रमा की सतह पर अनियंत्रित लैंडिंग करते हैं। वे प्रभाव के बाद नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फिर भी अपने रास्ते पर चंद्रमा के बारे में कुछ उपयोगी जानकारी भेजते हैं। चंद्रयान-1 के एक उपकरण ‘मून इम्पैक्ट प्रोब’ को भी इसी तरह चंद्रमा की सतह पर क्रैश लैंडिंग के लिए बनाया गया था। इसरो की मानें तो इसके द्वारा भेजे गए डेटा ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी के अतिरिक्त सबूत दिए थे।

लैंडर: ये मिशन चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए होते हैं। ये ऑर्बिटर मिशन से अधिक कठिन हैं। चंद्रमा पर पहली सफल लैंडिंग 1966 में रूस के लूना 9 अंतरिक्ष यान द्वारा की गई थी। इसने चंद्रमा की सतह से पहली तस्वीर भी जारी की। हालांकि, इससे पहले 11 प्रयास किए गए लैंडर मिशन अपने उद्देश्य में विफल रहे।

रोवर्स: ये लैंडर मिशन का विस्तार हैं। भारी होने के चलते लैंडर अंतरिक्ष यान को पैरों पर खड़ा होना पड़ता है। लैंडर पर मौजूद उपकरण नजदीक से अवलोकन कर सकते हैं और डेटा एकत्र कर सकते हैं, लेकिन चंद्रमा की सतह के संपर्क में नहीं आ सकते या इधर-उधर नहीं जा सकते। इस कठिनाई को दूर करने के लिए रोवर्स को डिजाइन किया गया है। रोवर्स लैंडर पर खास पहिएदार पेलोड होते हैं जो खुद को अंतरिक्ष यान से अलग कर सकते हैं। इसके साथ ही रोवर्स चंद्रमा की सतह पर घूम सकते हैं और उपयोगी जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं जो लैंडर के भीतर के उपकरण हासिल नहीं कर सकते। इसरो के चंद्रयान-2 मिशन में ‘विक्रम’ लैंडर पर रोवर ‘प्रज्ञान’ मौजूद था।

मानव मिशन: इनमें चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारना शामिल है। अब तक सिर्फ अमेरिका की नासा ही चांद पर इंसान को उतार पाई है। अब तक, 1969 से 1972 के बीच दो-दो अंतरिक्ष यात्रियों की छह टीमें चंद्रमा पर उतरी हैं। अब नासा अपने आर्टेमिस III के साथ एक बार फिर चंद्र सतह पर लोगों को ले जाने के लिए तैयार है।  फिलहाल आर्टेमिस III की लॉन्चिंग 2025 के लिए प्रस्तावित है।



Source link

Facebook
Twitter
LinkedIn
Pinterest
Pocket
WhatsApp

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *