राजेंद्र सिंह और यमुना की बाढ़…
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दिल्ली की जल निकासी का पहला मास्टर प्लान 1976 में बना। इससे पता चलता है कि दिल्ली में बारिश का पानी तीन रास्तों से निकलता था। पहला साहिबी नदी, जो अब नजफगढ़ नाला है, बारापुला नाला और शाहदरा नाला। इसमें 201 छोटे-छोटे नाले मिलते थे। इसमें जो सिस्टम बना, उसमें रिज समेत दिल्ली के हर इलाके की बारिश की हर बूंद यमुना तक पहुंचती थी, जबकि आज तीनों ड्रेनेज गंदे नालों को वर्षा जल में मिलाकर मल मूत्र ढोने वाली ड्रेनेज बन गई हैं। इस बदलाव से जल के अविरल प्रवाह में बाधा आई है और दिल्ली यमुना के जल से डूबने लगी है, जबकि शहर आज बे-पानी है। भूजल के भंडार खाली हो रहे हैं। नतीजतन, गंगा जैसी दूसरी नदियों से पानी लाकर यमुना की दिल्ली को जिंदा रखे हैं।
दिलचस्प यह है कि बीते करीब चार दशकों से बाढ़ से मुक्ति की युक्ति खोजने के क्रम में समस्या बढ़ती गई है। सरकारें अब अपने को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन का हल्ला कर रही हैं, लेकिन यह भारतीय विद्या के विस्थापन और नए सीमेंट-कंक्रीट के खड़े किए गए जंगलों का नतीजा है। दिल्ली की मौजूदा बाढ़ लालची विकास की देन है। इसने केवल दिल्ली में ही नहीं, हिमाचल, उत्तराखंड, हिमालय में भी बहुत विनाश किया है। यह मानव निर्मित बाढ़ है, जो विकास का विनाश है। यह प्रकृति की देन नहीं है। यह बादल फटने भर का मामला नहीं, सरकारों की बड़ी लापरवाही है और राजधानी दिल्ली को अपनी जगह रहना है, तो हमें हिमालय की हरियाली और नदियों की अविरलता को सैद्धांतिक रूप में संरक्षण देना जरूरी है।
यमुना का पानी तुरंत छोड़ा जाए तो दिल्ली में सुधर सकती है स्थिति
दिल्ली में इस समय बाढ़ का पानी भरा हुआ है। इसे रोका तो नहीं जा सकता, कम करने के लिए ओखला के पास यमुना नदी से एक बड़ी नहर निकलती है। आगरा और आगे गुरुग्राम कैनाल है। गुरुग्राम कैनाल राजस्थान के भरतपुर तक जाती है। इसमें इस समय पानी नहीं है। यदि इसमें यमुना का पानी तुरंत प्रभाव से छोड़ा जाए तो कुछ दिल्ली का पानी कम हो सकता है। इसी कैनाल से एक नहर सोहना के पास बने रोजका मेव औद्योगिक क्षेत्र के पास से गुजरती हुई नूंह जिले की कोटला झील में गिरती है। यह झील भी सूखी है। इसको भरा जा सकता है। कोटला झील से उजीना झील है, पानी इस तक भी पहुंच सकता है। उजीना झील ओवरफ्लो करके उजीना डायवर्सन ड्रेन में पानी ले जाएगी। यह पानी होडल से काफी दूर पूरब दिशा में फरीदाबाद से आने वाली गोनची ड्रेन में मिलती है। आगे यह पानी गोनची ड्रेन से होते हुए हसनपुर के नजदीक में यमुना में चला जाता है। इस सिस्टम में बीच-बीच कुछ बाधाएं हैं, लेकिन उनको ठीक किया जा सकता है।
अपस्ट्रीम भी कमजोर नहीं
अभी जो पानी दिल्ली पहुंच रहा है, उसको भी हरियाणा के कैनाल सिस्टम में डालने पर काम करना चाहिए। पहले इसका पानी मानसी की झील में डाला जा सकता था। इस बार वो काम नहीं किया गया, अभी भी जो पानी ऊपर से आ रहा है, दिल्ली में कम से कम पहुंचे, इसके लिए हरियाणा, यूूपी में जितने भी कैनाल सिस्टम हैं, उसमें यमुना का पानी बांट दें। मेरे गांव डोला बागपत की यमुना आज भी सूखी है और वहां सिंचाई के पानी की जरूरत है। इस काम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और यूपी सभी संबंधित सरकार के सिंचाई व कैनाल विभाग आदि संबंधित विभागों को समझना होगा कि बाढ़ के पानी का उपयोग सुखाड़ मिटाने के लिए किया जाए।
आओ, नदियों की प्राकृतिक सीमाओं को जानें
नदियों पर अतिक्रमण रोकने के लिए, प्रवाह क्षेत्र (ब्लू जोन), बाढ़ क्षेत्र (ग्रीन जोन), उच्चतम बाढ़ क्षेत्र (रेड जोन) की पहचान, सीमांकन, चिन्हीकरण व रिकॉर्ड में मानचित्र के अनुरूप राजपत्रितकरण करें। शहरों का मलमूत्र व उद्योग के प्रदूषित जल और वर्षा जल का प्रवाह अलग करें। यमुना में हिमालय से लेकर प्रयागराज के बीच कहीं खनन की स्वीकृति न दें, जहां नदी में खनन हो रहा है, उसको रोक दें। ऐसा करने से नदी का स्वस्थ ठीक होगा और दिल्ली बाढ़ मुक्त बनेगी।
(जल पुरुष के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह ने जैसा अमर उजाला संवाददाता संतोष कुमार को बताया)