Delhi : पीठ में नौ घंटे तक धंसा रहा चाकू, किसी ने छुआ नहीं, एम्स में दुर्लभ सर्जरी के बाद बच गई मरीज की जान

Delhi : पीठ में नौ घंटे तक धंसा रहा चाकू, किसी ने छुआ नहीं, एम्स में दुर्लभ सर्जरी के बाद बच गई मरीज की जान



एम्स में सर्जरी के दौरान मरीज…
– फोटो : अमर उजाला

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हरियाणा के करनाल में आभूषण दुकान में लूटपाट के इरादे से 30 साल के युवक की पीठ में मारा गया पेशेवर चाकू यदि निकाल दिया जाता तो मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता। विशेषज्ञ बताते हैं कि घटना के बाद उसे पहले दो स्थानीय अस्पतालों में ले जाया गया। वहां से रेफर होकर करीब आठ-नौ घंटे में एम्स के ट्रामा सेंटर पहुंचा। ऐसे में शरीर में घुसे चाकू के कारण शरीर से रक्त रिसाव काफी हद तक रुका रहा, यदि उसे निकाल दिया जाता तो तेजी से रक्त रिसाव हो जाता। चाकू पीठ में पांच से छह इंच तक अंदर चला गया था। यह महाधमनी (दिल की मुख्य धमनी जिससे पूरे शरीर में जाता है खून) से महज कुछ मिमी ऊपर रह गया।

एम्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख और आर्थोपेडिक सर्जरी के प्रोफेसर डा. कमरान फारूकी ने बताया कि डॉक्टरों की टीम ने ढाई घंटे की सर्जरी के बाद चाकू को निकाला। अब युवक के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है और बैसाखी के सहारे चलने लगा है। उन्होंने बताया कि यह चाकू रीढ़ की हड्डी और वर्टिब्रा डी-6 व डी-5 को चीर कर अंदर तक धंस गया था। चाकू लगने के कारण शरीर के निचले हिस्से का संपर्क दिमाग से प्रभावित हो गया है। सर्जरी के बाद मरीज के दोनों हाथ व दांये पैर में जान है। जबकि बांये पैर में जान नहीं दिख रही है। ऐसे में अगले एक साल में कुछ स्पष्ट हो पाएगा कि उसका बांया पैर सामान्य हो पाएगा या नहीं।

चुनौतीपूर्ण था सर्जरी करना

डा. फारूकी ने कहा कि यह सर्जरी करना चुनौतीपूर्ण था। यदि चाकू पर थोड़ा भी दबाव पड़ता तो महाधमनी कट सकती थी। ऐसी स्थिति में युवक की जान को खतरा हो सकता था। ऐसे में मरीज को पेट के बल पर उल्टा लिटा कर एनेस्थीसिया और वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया। एनेस्थीसिया के विशेषज्ञ डा. अभिषेक बताया कि सीधा लिटा कर एनेस्थीसिया करते हैं, लेकिन इसमें मरीज को उलटा लिटाकर ही रखना था। ऐसे में लैरिंगोस्कोप तकनीक की मदद से एनेस्थीसिया दिया और वेंटिलेटर सपोर्ट देकर सर्जरी की गई। इस दौरान सुरक्षित तरीके से चाकू को निकालकर स्क्रू व राड डालकर मरीज की रीढ़ की हड्डी को को ठीक किया गया।

जानकारी न हो, तो न निकाले चाकू

ट्रामा सेंटर के प्रोफेसर डा. अमित गुप्ता ने कहा कि ऐसे मामलों में यदि जानकारी न हो तो चाकू को बाहर नहीं निकालना चाहिए। इस मामले में भी मरीज के लिए चाकू को न निकालना फायदेमंद साबित हुआ। उन्होंने कहा कि उसे पहले दो अस्पताल ले जाया गया। दोनों अस्पताल ने चाकू को नहीं निकाला। साथ ही मरीज के परिजन ने भी चाकू को नहीं निकाला। ऐसे मामलों में दक्षता की जरूरत होती है। सर्जरी के दस दिन बाद मरीज की रिकवरी तेजी से हो रही है। उम्मीद है कि वह पुनर्वास से ठीक हो सकता है।



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