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नई दिल्ली में हो रहे जी20 सम्मेलन से जुड़ी खबरें दुनियाभर के मीडिया में छाई हुई हैं। अमेरिकी मीडिया ने भी इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया है। अमेरिकी मीडिया में लिखे गए लेखों में परोक्ष रूप से भारतीय कूटनीति को सराहा गया है। दरअसल यूक्रेन युद्ध के चलते संयुक्त घोषणा पत्र पर आम सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण था लेकिन भारत ने अपने कूटनीतिक कौशल से इस मुश्किल काम को भी अंजाम दे दिया। हालांकि संयुक्त घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस को जवाबदेय ना ठहराए जाने को लेकर अमेरिकी मीडिया में नाराजगी भी दिखी।
यूक्रेन युद्ध को लेकर लिखी ये बात
न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में लिखा गया है कि नई दिल्ली में जी20 सम्मेलन के संयुक्त घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के आक्रामक रुख और उसके क्रूर आचरण की निंदा नहीं की गई। हालांकि यूक्रेनी लोगों की पीड़ा पर दुख व्यक्त किया गया जबकि बीते साल इंडोनेशिया के बाली में जी20 के संयुक्त घोषणा पत्र में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की कड़ी निंदा की गई थी और रूस को अपनी सेना को यूक्रेन की धरती से वापस बुलाने की मांग की गई थी।
अमेरिकी मीडिया ने बताया दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन से जो हासिल हुआ है, उसमें वैश्विक कर्ज के मुद्दे पर गरीब देशों की परेशानियों को दूर करने के लिए विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में सुधार पर सहमति बनी। साथ ही अफ्रीकी संघ को जी20 में शामिल किया गया और कमजोर देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक वित्तपोषण देने पर जोर दिया गया। सम्मेलन में वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में समावेशन बढ़ाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों की अहमियत को भी माना गया। भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से रेल लिंक द्वारा जोड़ने वाले रेल और शिपिंग कॉरिडोर को भी अमेरिकी मीडिया ने अहम माना लेकिन, परियोजना के लिए बजट या समय सीमा का एलान नहीं होने पर उसने निराशा भी जाहिर की।
‘पीएम मोदी ने किया नेतृत्व’
अमेरिकी मीडिया में छपे लेख के अनुसार, जी20 सम्मेलन के दौरान जो बाइडन अधिकतर समय बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे और उन्होंने पीएम मोदी को नेतृत्व करने दिया। अमेरिकी मीडिया के अनुसार, पहले इस तरह के आयोजन में अमेरिकी राष्ट्रपति विभिन्न देशों के राष्ट्रपमुखों के साथ द्विपक्षीय बैठकें करते थे लेकिन इस बार इनकी कमी साफ दिखाई दी। वहीं पीएम मोदी ने दुनिया के सामने भारत की क्षमताओं को अच्छे से पेश किया।
भारत की कूटनीति को परोक्ष रूप से सराहा
अमेरिकी मीडिया ने विदेशी नीति के एक विशेषज्ञ के हवाले से लिखा कि पिछले राष्ट्रपतियों की तरह जो बाइडन भी भारत को अमेरिका के करीब लाने की कोशिश करते दिखे। विशेषज्ञ ने लिखा कि भारत ने संयुक्त घोषणा पत्र में रूस या चीन का विरोध नहीं किया। साथ ही यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की आलोचना भी नहीं की गई।