Ghosi Bypoll: Mayawati
– फोटो : Amar Ujala/Sonu Kumar
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उत्तर प्रदेश के घोसी में मंगलवार को उपचुनाव हो गया। सियासी नजरिए से इस उपचुनाव के नतीजों को NDA और I.N.D.I.A के तैयार हुए प्लेटफार्म की मजबूती के तौर पर आंका जा रहा है। कहा यही जा रहा है कि इसके परिणाम बताएंगे कि सियासत में गठबंधन की राजनीति किस कदर उत्तर प्रदेश में बढ़त लेने वाली है। लेकिन इन सब के बाद भी एक तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यह चुनाव NDA और INDIA से हटकर, मायावती की उस सियासी चाल की भी गहराई नापेगी, जिसमें चुनाव से कुछ रोज पहले बसपा ने अपने वोटरों से घर से न निकलने समेत नोटा दबाने का सियासी दांव चला था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में मायावती के इस प्रयोग के परिणाम कई तरह के बड़े “सियासी संदेश” भी देंगे। सियासी जानकार तो यह भी मानते हैं कि ऐसा करके मायावती ने एक तरह से भाजपा को मंगलवार
को हुए उपचुनाव में खुला मैदान दे दिया था।
घोसी उपचुनाव से उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन के ताप की आजमाइश हो जाएगी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि घोसी के उपचुनाव में NDA या INDIA गठबंधन के प्रत्याशी की ही जीत होनी है। सियासी विश्लेषक श्रीप्रकाश कहते हैं कि यहां के चुनाव में आए नतीजों के जो सियासी मायने होंगे, वह तो उत्तर प्रदेश की सियासत का पारा गर्म ही करेंगे। लेकिन इस चुनाव के नतीजे के साथ मायावती के वोटरों का ‘वजन’ भी पता चल जाएगा। वह कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव से पहले अपने मतदाताओं से पोलिंग स्टेशन पर जाकर या तो नोटा दबाने की अपील की या घर से न निकलने के लिए कहा था। राजनीतिक विश्लेषक श्रीप्रकाश कहते हैं इससे पहले के चुनाव में घोसी में बहुजन समाज पार्टी का ठीक-ठाक वोट प्रतिशत भी होता था और प्रत्याशियों को अच्छे वोट मिलते थे। ऐसे में घोसी के उपचुनाव के परिणाम बताएंगे कि मायावती का वोट बैंक के वास्तव में नोटा ही दबा कर आया है। या वह I.N.D.I.A और NDA में से किसी एक को मजबूती दे आया।
सियासी जानकारों का कहना है कि इस चुनाव के नतीजे किसी भी पार्टी के पक्ष में आएं, लेकिन इस परिणाम के बड़े सियासी मायने भी निकाले जाएंगे। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ओपी तंवर कहते हैं कि राजनीतिक गलियारों में तो चर्चा इस बात की भी हो रही है कि आखिर बसपा ने अपने वोटरों को नोटा दबाने या घर से न निकलने की बात कह कर अपरोक्ष रूप से किसी एक दल की ओर जाने का इशारा तो नहीं किया है। तंवर कहते हैं कि बीते कुछ चुनाव के परिणाम बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी का एक बड़ा वोट बैंक भारतीय जनता पार्टी की ओर शिफ्ट हुआ है। अब घोसी उपचुनाव के परिणाम बताएंगे कि मायावती पार्टी का वोट बैंक वास्तव में न्यूट्रल होकर घर में बैठा या नोटा दबाने के लिए पोलिंग स्टेशन पहुंचा। या फिर इन सब से हटकर उसने पोलिंग स्टेशन में जाकर भाजपा या समाजवादी पार्टी को वोट दिया।
उत्तर प्रदेश की सियासत को करीब से समझने वालों का कहना है कि जब सभी सियासी दल बड़े गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में जोर आजमाइश कर रहे हैं, तो मायावती का इस महत्वपूर्ण उपचुनाव में न्यूट्रल हो जाना, कई तरह के राजनीतिक सवाल भी खड़े कर रहा है। वरिष्ठ पत्रकार जीडी शुक्ला कहते हैं कि घोसी उपचुनाव के नतीजे स्पष्ट कर देंगे कि मायावती के वोट बैंक ने इस चुनाव में किस तरह मतदान किया है। वह कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने घोसी सीट पर 54000 वोट हासिल किए थे। अब यह मतदाता जिस दिशा में भी जाएंगे, चुनावी परिणाम का पूरा रुख बदल जाएगा।
राजनीतिक जानकार ज्ञानेंद्र प्रकाश कहते हैं कि घोसी सीट पर 90 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति के वोटर हैं। यह वोटरों की वह संख्या है जो किसी भी चुनाव के परिणाम को बदलने की क्षमता रखते हैं। इसके अलावा तकरीबन 95 हजार मुस्लिम, 50 हजार राजभर, 50 हजार नोनिया, 30 हजार बनिया, 19 हजार निषाद, 15 हजार क्षत्रिय, इतने ही कोइरी, 14 हजार भूमिहार, 7 हजार ब्राह्मण, 5 हजार कुम्हार वोटर हैं। उनका कहना है कि जिस तरीके से दलित बाहुल्य क्षेत्र में भी भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जीते हैं, उससे घोसी में बसपा के न्यूट्रल होने से भाजपा का उत्साह बढ़ गया था। वह कहते हैं कि ऐसे चुनावी साल में आखिर मायावती ने अपने वोटरों को घर से न निकलने की बात कहकर वह कौन सा सियासी दांव चला है, यह तो बहुजन समाज पार्टी के रणनीतिकार ही जानते होंगे। लेकिन उनका कहना है कि यह तय है कि ऐसा करके बहुजन समाज पार्टी में NDA और I.N.D.I.A गठबंधन के नेताओं को उनके वोट बैंक में सेंधमारी करने का खुला मौका दे दिया था।