बसपा का पारंपरिक वोटर छिटक गया।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
किसी भी चुनाव नतीजे को बदलने का माद्दा रखने वाले दलित वोटरों ने घोसी उपचुनाव में साबित कर दिया कि वे न तो किसी फरमान की बंदिश में बंधें हैं और न ही किसी के लुभावने वादों में फंसने वाले हैं। चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि बड़ी संख्या में दलित साइकिल पर सवार हो गए। पार्टी सुप्रीमो की अपील भी इन वोटरों पर बेअसर साबित हुई।
यह उपचुनाव एक तरह से पक्ष और विपक्ष की सीधी टक्कर का था। हालांकि, बसपा ने कहा था कि यह थोपा गया चुनाव है। ऐसे में बसपाई या तो चुनाव से दूर रहें या नोटा दबाएं। बसपा ने यह फरमान पूरे भरोसे के साथ जारी किया था क्योंकि घोसी में बसपा समर्थकों की बड़ी संख्या है। बसपा उम्मीदवारों को यहां पिछले कई चुनावों में लगभग 50 हजार वोट मिलते रहे हैं। बीते तीन चुनाव के नतीजे बताते हैं कि करीब 90 हजार से अधिक दलित मतदाताओं वाली इस सीट पर बसपा की पकड़ मजबूत है।
वर्ष 2022 में यहां बसपा प्रत्याशी वसीम इकबाल को 54,248 मत मिले थे। वर्ष 2019 के उपचुनाव में बसपा के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50,775 वोट और 2017 में बसपा के अब्बास अंसारी 81,295 मत मिले थे। ऐसे में बसपा के पास इस सीट पर खेल को बनाने और बिगाड़ने की पूरी क्षमता थी।
बी-टीम का ठप्पा हटाने की भी कोशिश
विपक्ष अक्सर बसपा को भाजपा की बी टीम कहता रहा है। इस चुनाव में जब बसपा ने अपने समर्थकों से चुनाव से दूर रहने को कहा तो भाजपाई खेमा परेशान हो गया। उसे आशंका थी कि दलित वोटरों का क्या रुख रहेगा? उधर, सपा खेमे में इससे खुशी की लहर दिखने लगी क्योंकि सपा प्रत्याशी दलितों पर गहरी पैठ बनाए हुए थे। उधर, भाजपा ने भी दलित वोटबैंक में सेंधमारी के लिए पूरी ताकत लगाई, लेकिन बसपा यह पारंपरिक वोट बड़ी संख्या में सपा में शिफ्ट हो गया।
नोटा आंकड़ा दो हजार से कम रहा
इस बार कुल 50.7% वोटिंग हुई, जो पिछले चुनाव से लगभग 8 प्रतिशत कम रही। करीब 2.56 लाख वोटर चुनावी रण से दूर रहे। वर्ष 2019 में यहां हुए उप चुनाव में लगभग 51.61 फीसदी वोट पड़े थे और भाजपा ने चुनाव जीता था। शुरुआत में इसे बसपाई अपील का असर माना जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं रहा। वोटिंग के लिए न निकलने वाले वोटर मिलेजुले रहे। नोटा की संख्या तो दो हजार से भी कम रही।