गोपालदास “नीरज”: भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना
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रूमानी गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले गोपालदास नीरज ने लिखा था-इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, तुमको लग जाएंगी सदियां हमें भुलाने में। लेकिन इस गीतकार को शायद ही कभी भुलाया जा सके।
4 जनवरी 1925 को इटावा जिले के गांव पुरावली में जन्मे नीरज जब छह साल के थे, तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। उन्होंने डीएस कॉलेज के हिंदी विभाग में बतौर शिक्षक अपने दायित्व का निर्वहन किया। मायानगरी के लिए उन्होंने कई गीत लिखे। इनमें लिखे जो खत तुझे.. वो तेरी याद में.., बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं…, ये भाई जरा देख के चलो.., खिलते हैं गुल यहां, खिल के बिखरने को, फूलों के रंग से दिल की कलम से.., स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से.., कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे.. बेहद चर्चित हैं।
वह कवि सम्मेलन और मुशायरों की शान बनते गए। पद्मश्री और पद्मभूषण से अलंकृत नीरज जी ने शर्मीली, मझली दीदी, कन्यादान, दुनिया, जंगल में मंगल, यार मेरा, मेरा नाम जोकर, प्रेम पुजारी, तेरे मेरे सपने, कल आज और कल, छुपा रुस्तम, गैंबलर, मुनीम जी, रेशम की डोरी, जाना न दिल से दूर आदि फिल्मों में करीब 135 गीत लिखे। राजकपूर, देवानंद, एसडी वर्मन से उनके बेहद करीबी रिश्ते थे। गोपाल दास नीरज 19 जुलाई 2018 को दुनिया को अलविदा कह गए।