ताश के पत्तों की तरह ढह गए भवन।
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रियासत काल में राजा रघुवीर सिंह की ओर से बसाए गए आनी कस्बे पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। एक ओर जहां बादल फटने जैसी आपदाओं से कस्बा उबर नहीं पा रहा है, वहीं अब यहां बने मकान खतरे की जद में आने से लोग सहम गए हैं। कई लोगों ने अपने जीवनभर की जमा पूंजी मकानों के निर्माण में लगा दी है और आपदा आने पर ताश के पत्तों की तरह पलभर में यह संपत्ति ढह रही है। बीते दो दशकों में आनी में सैकड़ों मकानों का निर्माण हुआ है। उपमंडल का केंद्र बिंदु होने के नाते हर कोई यहां बसना चाहता है, लेकिन बिना किसी योजना के बने मकानों पर अब खतरे के बादल मंडराते देख हर कोई चिंतित है।
आनी कस्बे में बिना योजना, भूमि जांच, स्ट्रक्चर डिजाइन और बिना ड्रेनेज व रिटेनिंग वॉल के कई मकानों का निर्माण हुआ है। कई घरों का पानी हर कहीं से रिस रहा है। ऐसे में आनी कस्बे में हो रहे इस तरह के खतरनाक निर्माण को सुनियोजित ढंग से पटरी पर लाने के लिए नगर पंचायत बनाई गई थी, ताकि मकानों का निर्माण टीसीपी गाइडलाइन के तहत हो, लेकिन यह भी आनी का दुर्भाग्य रहा कि नगर पंचायत को निरस्त कर दिया गया है। कस्बे में अधिकतर मकान चार मंजिलों से अधिक बने हैं।
ऐसे में जनता के बीच भी यह चर्चा शुरू हो गई है कि टीसीपी गाइडलाइन को ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनाना चाहिए, क्योंकि टीसीपी गाइडलाइन की जरूरत गांवों में भी है। इसके साथ आनी कस्बे में जो मकानों का अथाह निर्माण हो रहा है, वह अधिकतर अप्रशिक्षित मिस्त्रियों ने किया है। ऐसे में यह भी सवाल है कि ऐसे मिस्त्रियों द्वारा बनाए जा रहे मकान रहने के लिए कितने सुरक्षित हैं। बहरहाल, आनी में हुआ हादसा कई सवाल छोड़ गया है। संवाद
विशेषज्ञों की बनाई कमेटी
उपायुक्त कुल्लू आशुतोष गर्ग ने कहा कि हादसा स्थल से मलबे को नियंत्रित तरीके से उठाने और अस्थिर भवनों को स्थिर करने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाई गई है। कमेटी की सिफारिश पर आगामी कदम उठाया जाएगा।