यूपी के भदोही जिले में लगातार दूसरे साल आयोजित अंतरराष्ट्रीय कालीन मेला (इंडिया कारपेट एक्सपो) का बुधवार को समापन हो गया। चार दिन के इस एक्सपो में कई देशों के खरीदारों और उनके प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। विदेशी प्रतिनिधियों में परंपरागत हैंडनाटेड पर्सियन कालीन की मांग कम हुई है। इसका मुख्य कारण इसका महंगा होना बताया जा रहा है। निर्यातकों कहना है कि खरीदारों का जोर सस्ता, सुंदर और टिकाऊ कालीन पर रहा। हस्तनिर्मित और सिल्क के कालीन महंगे और सुंदर होते हैं। इस बार दोनों कालीन की मांग कुछ खास नहीं रही। खरीदार सस्ते कालीन ही ढूंढते रहे। कालीन निर्यात संवधर्न परिषद (सीईपीसी) ने चार दिनों में 400 करोड़ से ज्यादा कारोबार होने की उम्मीद जताई है। एक्सपो में 255 विदेशी खरीदार और 250 आयातक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
भदोही में दूसरी बार अंतरराष्ट्रीय कालीन मेला का आयोजन होने से निर्यातक के साथ ही सीईपीसी के प्रशासनिक समिति के सदस्य भी काफी उत्साहित थे। इस बार बीते साल की अपेक्षा ज्यादा आयातकों ने पंजीकरण कराया था लेकिन कम व्यापार का अनुमान जताया जा रहा है।
हस्तनिर्मित और सिल्क के कालीन महंगे और सुंदर होते हैं। इस बार कारपेट में दोनों कालीन की मांग कुछ खास नहीं रही। हैंडनाटेड कालीन तैयार में होने में महीनों लगते हैं। सिल्क की कालीन बनने में भी वर्षों लग जाते हैं और रेशम की कीमत भी ज्यादा होती है। ऐसे में इनकी लागत बढ़ जाती है।
एजाज अहमद ने बताया कि उन्होंने सस्ते से लेकर महंगे फ्लोर कवरिंग प्रदर्शित किए थे, लेकिन खास लाभ नहीं मिला। बताया कि हैंडटफ्टेड, हैंडलूम, ऊनी और सूती दरियां, हैंडनाटेड के अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं, इसलिए उनकी मांग से बाजार कुछ संभला रहा। सिल्क कालीन बनाने वालों में मायूसी रही।
नई दिल्ली से सिल्क कालीन लेकर आए साकिब अल्ताफ ने बताया कि गत वर्ष भी वे आए थे, लेकिन तब हालात बेहतर थे। उधर एक्सपो के अंतिम दिन दोपहर बाद से लोग स्टॉल को बढ़ाने में लग गए। बाहर से आए निर्यातकों को आज ही लौटना था, इसलिए शाम तक मेला क्षेत्र से निकल गए।