सांकेतिक तस्वीर।
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देश की राजधानी नई दिल्ली में इन दिनों नौसेना के शीर्ष कमांडरों का तीन दिवसीय सम्मेलन चल रहा है। इस सम्मेलन में जहां समुद्री बलों की भूमिका और जिम्मेदारियों के विस्तार के बारे में चर्चा की जा रही है वहीं इसमें वार्डरूम और अधिकारियों के मेस के साथ-साथ उनके कर्मियों और परिवारों द्वारा पहनी जाने वाली पश्चिमी पोशाकों के साथ ही भारतीय पारंपरिक पोशाकों को अनुमति देने पर भी चर्चा हो सकती है। नौसेना के सूत्रों ने इस बारे में जानकारी दी।
दरअसल, देश के सुरक्षा बलों में आजादी के इतने दिनों बाद भी कई ब्रिटिश परंपराओं का पालन किया जाता है। बल में शामिल कर्मियों को भारतीय पारंपरिक पोशाक पहनने की अनुमति न देना उन्ही में से एक है। सूत्रों ने कहा कि इसे पुरानी और औपनिवेशिक प्रथाओं को खत्म करने के लिए भारतीय नौसेना की पहल के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।
यह चर्चा ऐसे समय में हो रही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में अपनी पांच प्रतिज्ञाओं की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि व्यवहार और परंपरा में औपनिवेशिक काल के किसी भी निशान को खत्म करना होगा।
बता दें कि तीन दिवसीय कमांडरों का सम्मेलन सोमवार को रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट, सीडीएस जनरल अनिल चौहान और अन्य शीर्ष अधिकारियों की उपस्थिति में शुरू हुआ था। यह सम्मेलन तब हो रहा है जब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन अपनी ताकत बढ़ा रहा है।
नौसेना कमांडरों का सम्मेलन द्विवार्षिक आयोजन है, जो महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों पर विचार-विमर्श और निर्माण के लिए आपसी बातचीत की सुविधा प्रदान करता है। नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार की अध्यक्षता में भारतीय नौसेना का वरिष्ठ नेतृत्व पिछले छह महीनों के दौरान किए गए प्रमुख परिचालन, सामग्री, रसद, मानव संसाधन, प्रशिक्षण और प्रशासनिक गतिविधियों की समीक्षा करेगा।