सियार प्रतीकात्मक
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
इंसानी बस्तियों के आसपास खेत-खलिहानों में नजर आने वाले सियारों की संख्या कम होती जा रही है। झाड़ियों-वनस्पतियों का लगातार कम होना इसकी वजह बन रही है। मंगलवार को अलीगढ़ से रामघाट की ओर जाने वाले कल्याण सिंह मार्ग पर एक मृत सियार मिला। इसे किसी तेज रफ्तार वाहन ने रौंद दिया था। वन विभाग का कोई कर्मी इसके शव को लेने नहीं पहुंचा था।
अब गांवों में भी सियारों की हुआं-हुआं कम ही सुनाई देती है। वजह यह है कि सियारों के फलने-फूलने के अनुकूल परिस्थितियों का विषम होते जाना। पर्यावरणीय परिवर्तन का असर इस जंतु पर भी तेजी से पड़ा है। लेकिन रामघाट रोड अब भी इनका राज कायम है। इस मार्ग पर पसरा अंधेरा और सड़क के दोनों ओर उगी घनी झाड़ियां इसके छिपने का मुफीद स्थान है।
अंधविश्वास की बलि चढ़ रहे हैं सियार
लोग प्राचीन समय से सियार की हुआं-हुआं की आवाज को अपशगुन मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनकी आवाज का मतलब कुछ गलत होने से लगाया जाता है। रास्ते में अगर वाहन वाले को सियार दिख जाए, तो वह बिल्ली की तरह थोड़ी देर रुकता है। कई वाहन चालक तो सियार को अशुभ मानकर इस निर्दोष जानवर को रौंदकर आगे बढ़ जाते हैं। जिसके कारण सियार अधिकतर सड़कों पर मृत पाए जाते हैं।