यासीन मलिक
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सरकार की ओर से सेवानिवृत्त जज नीलकंठ गंजू की हत्या की एसआईए जांच से आतंकवाद के दौर में कश्मीरी पंडितों की हुई कई हत्याओं से पर्दा उठने की उम्मीद है। जेल में बंद यासीन मलिक के अलावा जावेद अहमद मीर उर्फ नलका तथा मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ लटरम समेत नब्बे के दशक में सक्रिय कई आतंकियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कश्मीरी पंडितों के अनुसार आतंकवाद के दौर में उनके 700 सदस्यों की हत्या की गई थी।
हालांकि, सरकारी आंकड़ों में यह संख्या 229 है। कुल 182 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें कश्मीरी पंडितों की हत्या संबंधी दो मामले में ही नामजद रिपोर्ट दर्ज है। किसी भी मामले में अब तक आरोप पत्र जारी नहीं किया गया है। सरकार की ताजा पहल से पंडितों में यह उम्मीद जगी है कि लोगों की ओर से दिए जाने वाले साक्ष्यों से अन्य हत्याकांड से भी राज खुल सकता है। कश्मीरी हिंदुओं में इसे विश्वास बहाली की पहल के रूप में देखा जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि कश्मीरी पंडितों की हत्या से जुड़े मुकदमे में केवल बिट्टा कराटे तथा जावेद नलका का ही नाम एफआईआर में है। 1990 में आतंकवाद के दौर में हाजी ग्रुप का नाम था। इसमें पांच आतंकी यासीन मलिक, इशफाक मजीद वानी, हमीद शेख, बंगड़ू तथा जावेद नलका थे। सभी दुर्दांत आतंकी थे। 1998 में गांदरबल के वंधामा गांव में एक साथ 22 पंडितों की हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में 21 आतंकियों के शामिल होने की बात कही जाती है, जिसमें 20 आतंकियों को विभिन्न मुठभेड़ों में मार गिराया गया।
2003 में शोपियां के शादीमर्ग में दो बच्चों समेत 24 पंडितों की हत्या कर दी गई। इसके अलावा भाजपा नेता टीकालाल टपलू, सेवानिवृत्त जज नीलकंठ गंजू तथा सर्वानंद कौल प्रेमी की आतंकियों ने हत्या कर दी। नर्स गिरजा टिक्कू का तीन दिन तक लगातार रेप करने के बाद उसका शव सौरा के पास सड़क पर फेंक दिया गया। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू का कहना है कि उन्होंने 2010-11 में विभिन्न थानों से आरटीआई दाखिल कर 1989 से 2010 तक आतंकी घटनाओं के संबंध में दर्ज एफआईआर की जानकारी मांगी थी।
इसमें 182 एफआईआर कश्मीरी पंडितों से जुड़ी हैं। इसके अलावा 50 अन्य मामलों में भी एफआईआर दर्ज हैं। उनका कहना है कि आतंकवाद के शिकार हुए ज्यादातर लोगों के परिवार के सदस्य अब जिंदा नहीं हैं। इन लोगों की गवाही ली जा सकती थी, लेकिन अब तो गिने-चुने लोग ही बचे रह गए हैं। वह अपने लोगों के साथ विचार-विमर्श कर यह तय करेंगे कि एसआईए के समक्ष साक्ष्य देना है या नहीं।
राज्य के पूर्व डीजीपी डॉ. एसपी वैद का कहना है कि सरकार के इस फैसले से कश्मीरी पंडितों को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। वैसे इसमें काफी देर हो चुकी है, लेकिन अब इसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने की उम्मीद है। पंडितों के नरसंहार के जिम्मेदार आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई संभव है। दरअसल जिस दौरान यह सब घटनाएं हुईं, उस समय डर का इतना माहौल था कि न तो किसी ने बयान दिया और न ही पुलिस ने जांच को अंजाम तक पहुंचाया। अब माहौल बदल गया है। ऐसे में जांच पूरी होने तथा आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता साफ हुआ है।
सभी को सहयोग करना चाहिए ताकि न्याय मिल सके
जम्मू-कश्मीर पीस फोरम के अध्यक्ष सतीश महालदार का कहना है कि सरकार का कदम स्वागत योग्य है। सभी को इसमें सहयोग करना चाहिए। जिसके पास भी घटना से जुड़ा कोई साक्ष्य हो, उसे पेश करना चाहिए ताकि एसआईए की इस जांच के जरिये अन्य मामले भी सुलझ सकें। विस्थापन का दंश झेल रहे कश्मीरी पंडितों को न्याय मिल सके। उन्होंने कश्मीरी फाइल्स बनाने वाले फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री से भी अपील की कि वह फिल्म बनाते समय एकत्र किए गए सभी साक्ष्य एसआईए के सामने लाएं, जिससे सच से पर्दा उठ सके।
1990 में सबसे अधिक हत्याएं
आतंकवाद के दौर में भी घाटी न छोड़ने वाले कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू का कहना है कि 1990 में सबसे अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्याएं हुईं। समिति की ओर से विभिन्न स्त्रोतों से हत्याओं का रिकॉर्ड जुटाया गया है, जिसके अनुसार 1990 में 299 पंडितों की हत्या की जानकारी मिली है। इसके अलावा 1998 में 22 तथा 2003 में 24 लोग मारे गए। 1989 में छह लोगों के मारे जाने की जानकारी मिली है।