पी चिदंबरम
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने रविवार को सरकार पर पूरे भारत में स्वतंत्रता का दमन करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार का कहना है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जम्मू-कश्मीर में शांति आई है। जबकि पूरे भारत में स्वतंत्रता का दमन किया गया है। इतना ही नहीं, सबसे गंभीर दमन केंद्र शासित प्रदेश में हुआ है।
सरकार बोली अनुच्छेद 370 के बाद विकास की राह पर जम्मू-कश्मीर
गौरतलब है, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने की वर्षगांठ के मौके पर सरकार ने शनिवार को इस बात पर प्रकाश डाला था कि इस ऐतिहासिक फैसले से जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की शुरुआत हुई है। उपराज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा ने श्रीनगर में कहा था कि अनुच्छेद हटने के बाद सबसे बड़ा बदलाव यह है कि जम्मू-कश्मीर के आम लोग अपनी मर्जी के मुताबिक जीवन जी रहे हैं।
कांग्रेस ने लगाया दमन का आरोप
इसी पर पलटवार करते हुए चिदंबरम ने कहा कि सरकार और जम्मू-कश्मीर के एलजी अनुच्छेद 37 के निरस्त होने के बाद राज्य (अब केंद्र शासित प्रदेश) में आई शांति का जश्न मना रहे हैं। उन्होंने पूछा कि अगर जम्मू-कश्मीर में इतनी शांति है, तो सरकार ने महबूबा मुफ्ती को घर में नजरबंद क्यों कर दिया है? साथ ही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यालयों को सील क्यों कर दिया गया है? उन्होंने आरोप लगाया कि पूरे भारत में आजादी का दमन किया जा रहा है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में सबसे गंभीर दमन हुआ है।
शनिवार को थी चौथी वर्षगांठ
बता दें, भाजपा ने शनिवार को श्रीनगर में एक सार्वजनिक बैठक के दौरान अनुच्छेद 370 के निरस्त होने की चौथी वर्षगांठ मनाई। इस दौरान नेताओं ने कहा कि साल पांच अगस्त, 2019 के फैसले के बाद अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में अभूतपूर्व स्थिरता का दौर है। तीन दशकों की उथल-पुथल के बाद क्षेत्र में जीवन सामान्य हो गया है। राज्य में लगातार प्रगति हो रही है। तीन वर्षों में स्कूल, कॉलेज और अन्य सार्वजनिक संस्थान कुशलता से काम कर रहे हैं। पत्थरबाजी अतीत की बात हो गई है। अब घाटी के लोगों को भी वह अधिकार प्राप्त हैं, जो देश के दूसरे प्रांतों के लोगों को हैं।
यह है मामला
5 अगस्त, 2019 को केंद्र ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर से विशेष दर्जा छीनने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का निर्णय लिया था। अनुच्छेद 370 और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया था। केंद्र ने तर्क दिया था कि जिस ऐतिहासिक संवैधानिक कदम को चुनौती दी जा रही है उससे क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास, प्रगति, सुरक्षा और स्थिरता आई है, जो पुराने अनुच्छेद 370 शासन के दौरान अक्सर नहीं थी।