खबरों के खिलाड़ी।
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देश में इन दिनों एनडीए बनाम इंडिया की खूब चर्चा है। विपक्ष की एकजुटता से क्या सत्ता पक्ष में कोई बेचैनी है, विपक्ष क्या अपनी एकजुटता बरकरार रख पाएगा और 2024 के आम चुनाव में एनडीए को टक्कर दे पाएगा? इस पर सभी की नजरें हैं। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए खबरों के खिलाड़ी की इस कड़ी में हमारे साथ मौजूद रहे वरिष्ठ विश्लेषक पंकज शर्मा, विनोद अग्निहोत्री, रास बिहारी, प्रेम कुमार, समीर चौगांवकर और संजय राणा। आइए जानते हैं एनडीए बनाम I.N.D.I.A मुद्दे पर विश्लेषकों की राय….
पंकज शर्मा
‘विपक्ष की तुलना आतंकवादियों से करना गलत है। क्या कभी किसी प्रधानमंत्री ने विपक्ष के खिलाफ ऐसा कहा है? अगर सत्ता पक्ष में बेचैनी नहीं है तो कोई बात नहीं है, लेकिन पीएम उनकी तुलना आतंकवादियों से कर रहे हैं? दरअसल सरकार को डर है कि अगर 200-250 सीटों पर ही विपक्ष के साझा उम्मीदवार खड़े हो गए तो सरकार की परेशानी बढ़ जाएगी। विपक्ष के पास यह आखिरी मौका है। अगर विपक्ष ज्यादा से ज्यादा सीटों पर एक साझा उम्मीदवार नहीं खड़ा कर पाता है तो यह बेहद निराशाजनक होगा।….देश की समझ में यह बात आ गई है कि खोखले दावे और जुमलेबाजी की जा रही है। अब इस जुमलेबाजी से काम नहीं चलेगा। इस देश में सामाजिक सौहार्द को बनाए रखना है तो इस सरकार को जाना होगा। इसके लिए विपक्ष को एकजुट होना ही पड़ेगा।’
समीर चौगांवकर
‘विपक्ष ने नाम अच्छा रखा है, लेकिन विपक्ष नाम चाहे जो रख ले, पीएम मोदी को चुनौती देना आसान नहीं होगा। हालांकि, लगातार पूर्ण बहुमत से आना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल होता है। लोकसभा चुनाव में 200 दिन का समय बचा है और इस दौरान काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे। सीटों के बंटवारे पर विपक्ष के बीच अभी सहमत होना बाकी है। विपक्ष अगर एक होगा तो सत्ता पक्ष पर फर्क तो पड़ेगा। विपक्ष ने वोट प्रतिशत देखकर भी एकजुट होने का फैसला किया है, लेकिन पीएम मोदी की लोकप्रियता और भाजपा के संगठन को देखते हुए 2024 में भाजपा के ही सत्ता में आने की उम्मीद है। अभी चुनाव में समय बाकी है, कुछ भी हो सकता है। 2024 का चुनाव काफी दिलचस्प होगा।’
प्रेम कुमार
‘राजनीतिक एकता जनता के दबाव से बनती है। पिछले चुनाव में विपक्ष एकजुट नहीं हो पाया तो मतलब है कि जनता का दबाव नहीं था। विपक्ष अब एकजुट हो रहा है तो इसका मतलब है कि जनता का दबाव बन रहा है। प्रधानमंत्री ने ‘क्विट इंडिया मूवमेंट’ की तर्ज पर नारा दिया कि ‘भ्रष्टाचार भारत छोड़ो’, लेकिन भ्रष्टाचार तो यहीं पैदा हुआ तो जाए कहां? अब प्रधानमंत्री के नारे प्रभावित नहीं कर रहे हैं। 80 सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा 2019 के आम चुनाव में पांच प्रतिशत वोटों के ही अंतर से जीती थी, वहां अगर विपक्ष एकजुट हो गया तो एनडीए की सत्ता से विदाई हो जाएगी।’
रास बिहारी
‘प्रधानमंत्री की शैली लगातार काम करने की है। बेचैनी है तो यह है कि जनता के बीच ज्यादा से ज्यादा काम कैसे किया जाए और सरकार की उपलब्धि जनता के बीच कैसे पहुंचाई जाए। 2024 में 200 से ज्यादा सीटों पर भाजपा को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री अपनी शैली में काम कर रहे हैं और बेचैनी जैसी कोई बात नहीं है।’
विनोद अग्निहोत्री
‘राम मनोहर लोहिया कहते थे कि राजनीति में हमेशा बेचैनी होनी चाहिए। बेचैनी होगी, तभी आप काम करेंगे। 2014 के आम चुनाव से एक साल पहले ही मोदी जी का चुनाव प्रचार शुरू हो गया था। अभी तक माहौल बनाने की बात हो तो भाजपा इसमें आगे रही है। देश में जब भी पूर्ण बहुमत से चुनाव जीते गए हैं, वह माहौल बनाकर ही जीते गए हैं। जहां-जहां भाजपा जीती वहां भी माहौल बनाकर जीती। वही मॉडल अब भी चल रहा है। अब विपक्ष भी माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है। चुनाव में गणित के साथ ही केमिस्ट्री भी मायने रखती है। विपक्ष का नाम इंडिया रखना भी, विपक्ष की जीत का रसायन बनाने की ही पहल है।’
संजय राणा
‘2013 में जाएं तो किसी ने नहीं सोचा था कि सोशल मीडिया पर भी चुनाव लड़े जा सकते हैं। भाजपा ने यह करके दिखाया। पीएम मोदी ट्रेंड सेट करते हैं और फिर बाकी लोग उन्हें फॉलो करते हैं। 2018 में भी विपक्ष की तस्वीर सामने आई थी, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? विपक्ष बंटा हुआ है। पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश में क्या होगा। विपक्ष अपना राजनीतिक धरातल खो चुका है और इसी धरातल को बचाने की कोशिश है। विधानसभा चुनाव कभी भी लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार नहीं करता।’