खबरों के खिलाड़ी।
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मोदी सरनेम मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी की सजा पर रोक लग गई है। इस फैसले के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सांसदी बहाल होने की राह खुल गई है। वहीं, भाजपा बैकफुट पर है। अमर उजाला के विशेष कार्यक्रम ‘खबरों के खिलाड़ी’ में जानकारों ने इस मामले पर अपनी राय रखी। इस कड़ी में वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, रुद्र विक्रम सिंह और प्रेम कुमार ने अपने विचार रखे। पढ़िए विश्लेषकों की चर्चा के कुछ अंश…
रामकृपाल सिंह
‘मामला चाहे काननी हो या राजनीतिक, जो परसेप्शन है, फर्क उससे पड़ता है। एक साधारण आदमी के लिहाज से देखें तो अभी इस मामले में केस चलेगा। फिलहाल, सजा पर रोक लगी है, लेकिन राहुल गांधी बरी नहीं हुए हैं। हालांकि, इस फौरी राहत से कांग्रेस को फायदा हुआ है। I.N.D.I.A बनने के बाद यह घटना कांग्रेस की स्थिति मजबूत करेगी। मैं मानता हूं कि आजादी से आज तक केंद्र में कोई विकल्प बन सकता है तो दो ही सूरत हैं- या तो लीडरशिप कांग्रेस की हो या वह भाजपा की हो। क्षेत्रीय पार्टी के हाथ में जाने पर यह कभी नहीं चला है। मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होता है। भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों का मजबूत होना जरूरी है। भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे के विरोधी हैं। वे तिल का ताड़ बनाएंगे। अमित शाह पर भी आरोप लगे हैं। चौकीदार चोर है जैसी बातें कही गई हैं। यहां गालिब का एक शेर लाजमी है, “हम ही बदनाम हो गए मिर्जा, वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता है”।’
पूर्णिमा त्रिपाठी
‘राहुल गांधी को सजा मिलने का पूरा मामला राजनीतिक दांवपेच से जुड़ा है। क्रोनोलॉजी देखें तो पता चलता है कि यह मामला तब शुरू हुआ, जब राहुल गांधी का एक्टिव पॉलिटिकल फेज शुरू हुआ। भारत जोड़ो यात्रा के बाद जब अदाणी मामला गरमाया, तब इसमें तेजी आई। आम आदमी के नजरिए से देखें तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत ने अपने फैसले में राहुल गांधी को अधिकतम सजा सुनाने का कोई कारण नहीं दिया है। ऐसे में यह पता चलता है कि निचली अदालतों के फैसले एक पॉलिटिकल स्टैंड से प्रभावित रहे। राहुल को राहत मिलना कांग्रेस के लिए अच्छा रहा। पार्टी को एक बूस्ट मिल गया है। अगर समय से राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल नहीं होती है तो यह साबित हो जाएगा कि ये सारी चीजें राजनीतिक मकसद से की जा रही हैं। ऐसा पब्लिक परसेप्शन बनेगा। यह कांग्रेस के लिए चित भी मेरी, पट भी मेरी जैसी स्थिति है।’
रुद्र विक्रम सिंह
‘कोर्ट ने राहुल गांधी की सिर्फ दोषसिद्धि पर रोक लगाई है। ऐसे में उन्हें फौरी तौर पर राहत मिली है। उनकी सांसदी बहाल होने का रास्ता साफ हुआ है। हालांकि, देश के एक आम आदमी के लिहाज से देखें तो इस पूरे प्रकारण से देश के ज्यूडिशयल सिस्टम से जुड़े एक दुर्भाग्य का भी पता चलता है। राहुल गांधी सक्षम थे। वे लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी निचली अदालतों से गुजरते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और वहां उन्हें राहत मिल गई। यहीं एक आम आदमी के साथ ऐसा होता तो क्या होता? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निचली अदालत के 125 पेज के जजमेंट को रोचक बताया है। इसमें राहुल गांधी को अधिकतम सजा दिए जाने का कोई कारण नहीं बताया गया है। केवल सुप्रीम कोर्ट से उन्हें दी गई चेतावनी का हवाला दिया गया है। बाकी सजा का कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है।’
‘राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल करने का मामला लोकसभा स्पीकर के पास विचाराधीन है। मंगलवार को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी दिखेंगे या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा। स्पीकर ने कहा है हमारे पास कोई ऑर्डर नहीं पहुंचा है। राहुल की सदस्यता बहाल करने के लिए स्पीकर कानूनी तौर पर बाध्य हैं। कांग्रेस के नेता दिल्ली में बैठकर सोचते हैं कि हमने जंग जीत ली। अगर ये जनता तक अपनी बात पहुंचा पाते हैं, तभी इसका फायदा है।’
प्रेम कुमार
‘जो नेतृत्वकर्ता होता है, वह सिस्टम को आइना दिखाता है। राहुल गांधी का जो फोकस है, वह है भ्रष्टाचार। राहुल गांधी को ऐसा करते रहता चाहिए। महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर भी मानहानि का केस लगा था, पर उन्होंने आवाज उठानी नहीं छोड़ी थी। राहुल गांधी ने जो कहा, वह भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाने वाला था। भाजपा राहुल गांधी का विरोध करते हुए उस हद तक आ गई है कि नीरव मोदी और ललित मोदी के साथ चली गई है।’
विनोद अग्निहोत्री
‘क्या सारे मोदी एक ही हैं? ललित मोदी मारवाड़ी है, पूर्णेश मोदी अन्य जाति से हैं। ऐसे में राहुल के खिलाफ पूरा मामला ही बुनियादी तौर पर गलत है कि उन्होंने सभी मोदी सरनेम वालों का अपमान किया। यह लगभग वैसा ही है, जैसा कभी कहा जाता था कि सारे आतंकवादी मुसलमान हैं। उस समय कोई कोर्ट नहीं गया। उसे राजनीतिक रंग नहीं दिया गया। राहुल गांधी ने कभी नहीं कहा कि सारे मोदी चोर होते हैं। उन्होंने केवल इतना कहा था कि इन सारे लोगों के सरनेम मोदी क्यों होते हैं? इसे दूसरे तरीके से भी कहा जा सकता था। यह सलीके का सवाल है। राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा था इसलिए यह मामला इतना गर्म हो गया। पूर्णेश मोदी भाजपा के विधायक हैं। मंत्री भी रह चुके हैं ऐसे में बिना राजनीतिक पार्टी की स्वीकृति के ऐसा नहीं कर सकते हैं। अब यहां यह देखना अहम है कि दोषसिद्धि पर स्टे हुआ है और अब लोकसभा स्पीकर उतनी ही तत्परता से उनकी संसद सदस्यता बहाल करने में रुचि दिखाते हैं, जितनी उनकी सांसदी खत्म करने के दौरान दिखाई थी, या नहीं।’