एक भारतीय के तौर पर बीता हफ्ता गौरवान्वित करने वाला रहा। इसरो ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिग कर इतिहास रच दिया। इसे लेकर जहां पूरे देश में गर्व का माहौल है, वहीं राजनीतिक पार्टियों में इसका श्रेय लेने की भी होड़ मची है। किसी ने इसका श्रेय प्रधानमंत्री को दिया तो किसी ने पूर्व प्रधानमंत्री को श्रेय दिया है।
श्रेय लेने की राजनीति क्यों हो रही है और इसके क्या निहितार्थ हैं, इस पर अमर उजाला की विशेष प्रस्तुति ‘खबरों के खिलाड़ियों’ में विशेषज्ञों के बीच बात हुई। इस बार चर्चा के लिए हमारे साथ वरिष्ठ विश्लेषक रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, हर्षवर्धन त्रिपाठी, पूर्णिमा त्रिपाठी, प्रेम कुमार और समीर चौगांवकर मौजूद रहे। इस चर्चा को अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर शनिवार रात नौ बजे लाइव भी देखा जा सकेगा। पढ़िए चर्चा के कुछ अहम अंश…
पूर्णिमा त्रिपाठी
‘यह किसी एक व्यक्ति की सफलता नहीं है। किसी ने इसके बारे में सोचा। किसी ने उसका बुनियादी ढांचा तैयार किया। किसी ने मिशन को आगे बढ़ाया। अगर इसका क्रेडिट पीएम मोदी को दिया जाए तो हमें पंडित नेहरू को भी नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने इसरो की स्थापना कराई। इसलिए इस मिशन का क्रेडिट पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी को भी दिया जाना चाहिए। चंद्रयान-2 मिशन की विफलता से चंद्रयान-3 मिशन की सफलता तक प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से वैज्ञानिकों को प्रेरित किया और उन्हें सहयोग दिया, उसका श्रेय भी पीएम मोदी को मिलना चाहिए। एक तरह से यह हर भारतीय का श्रेय है।’
रामकृपाल सिंह
‘मुझे ‘श्रेय’ शब्द से ही नफरत है। आज जब पीएम मोदी बंगलुरू पहुंचे तो शहर की सड़कों पर बच्चे, युवा और बुजुर्ग तिरंगा लिए दिखाई दिए और खास बात यह है कि इस दौरान किसी भी पार्टी का झंडा नहीं था और सिर्फ तिरंगा झंडा दिखाई दिया। तो क्रेडिट की लड़ाई, नेता लड़ते हैं, लेकिन जनता जानती है कि यह पूरे देश की जीत है। समाज में एक गुणात्मक बदलाव होता है और एक होता है संख्यात्मक बदलाव। जब किसी चीज में क्वालिटेटिव बदलाव होता है तो लोग उसे नोटिस करते हैं। वहीं क्वांटिटेटिव बदलाव धीरे-धीरे होता है और उसमें कई लोगों का योगदान होता है। समाज में बदलाव तो होना ही है और यह एक अवश्यंभावी प्रक्रिया है, लेकिन कई बार नेता इस बदलाव में तेजी ले आते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस बात के लिए तारीफ होनी चाहिए कि बीते 10 सालों में वे तेजी लेकर आए हैं। इसलिए हमें अतीत में उलझना नहीं चाहिए। अतीत की विशेषता ही यह है कि वह वर्तमान को जन्म दे और पर्दे के पीछे चला जाए। हमें इस बहस में नहीं उलझना चाहिए कि किस नेता ने इसकी शुरुआत की और किसके कार्यकाल में यह पूर्ण हुआ।’
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समीर चौगांवकर
‘इसमें किसी एक पार्टी या किसी एक व्यक्ति का योगदान नहीं है। जब 2019 में चंद्रयान-2 मिशन असफल हुआ था तो पीएम मोदी ने केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को कई बार इसरो के वैज्ञानिकों के पास भेजा था और वैज्ञानिकों को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया था। इस दौरान बजट आवंटन और अन्य सहयोग का भी ध्यान रखा गया। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री को इसका श्रेय मिलता है तो इसमें गलत क्या है। इसमें देश के वैज्ञानिकों का भी योगदान है, यह पूरे देश की सफलता है।’
प्रेम कुमार
‘इसरो की उपलब्धि को हम भारत और भारतीयों की उपलब्धि के रूप में देख रहे हैं, लेकिन यह पूरे विज्ञान और पूरी मानवता की उपलब्धि है। इसका श्रेय, विज्ञान और विज्ञानधर्मिता को दिया जाना चाहिए। हर देश, विज्ञान का समाज के कल्याण में इस्तेमाल करता है और इसमें सरकार की भूमिका होती है। इस विजन को पंडित नेहरू ने समझा और आगे की सरकारों ने उसे आगे बढ़ाया। सरकार की तत्परता, बजट आवंटन और सहयोग के लिए मौजूदा सरकार को इसका श्रेय जाता है लेकिन इसका राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना अखरता है। साथ ही किसी अन्य प्रधानमंत्री को इसका श्रेय नहीं देना भी गलत है। भाजपा नेताओं के ट्वीट में सिर्फ मैं-मैं ही दिख रहा है तो इस पर प्रतिक्रिया तो होगी ही। वहीं कांग्रेस भी एकांगी दिख रही है और मौजूदा सरकार को इसका श्रेय नहीं दे रही है। यह पूरे देश की उपलब्धि है।’
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हर्षवर्धन त्रिपाठी
‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और यह विपक्ष की छिछली सोच को दिखाता है। जब चंद्रयान के लैंडर ने चांद की सतह पर सफल लैंडिंग की तो यह देश के लिए महत्वपूर्ण अवसर था, उसी तरह देश के प्रधानमंत्री के लिए भी वह महत्वपूर्ण अवसर था। जब प्रधानमंत्री इसरों के वैज्ञानिकों के साथ ऑनलाइन जुड़े हुए थे तो उस वक्त टीवी पर पीएम मोदी के साथ में चंद्रयान की तस्वीरें भी चल रहीं थी। वैज्ञानिकों की खुशी भी दिखाई जा रही थी। जब सॉफ्ट लैंडिंग हुई तो प्रधानमंत्री तिरंगा लहराते दिखे तो इसमें क्या आपत्ति है। देश में पहली ट्रेन अंग्रजों ने चलाई तो क्या आज वंदे भारत ट्रेनों का श्रेय भी अंग्रेजों को दिया जाना चाहिए?’
विनोद अग्निहोत्री
‘पीएम मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और चंद्रयान सफल हो रहा है तो उसका श्रेय अगर पीएम मोदी को मिल रहा है तो उसमें गलत क्या है। जब इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से बात की थी, जब कंप्यूटर क्रांति हुई थी तो उस वक्त भी इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को ही श्रेय दिया गया था। तो अगर अब मौजूदा पीएम को श्रेय दिया जा रहा है तो उसमें आपत्ति क्या है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में सफलता का श्रेय देश के वैज्ञानिकों को दिया। हालांकि, वे पंडित नेहरू का नाम ले लेते तो और अच्छा होता। भाजपा के सारे ट्वीट में मौजूदा सरकार का जिक्र है, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी का कोई जिक्र क्यों नहीं किया! जबकि अटल जी की सरकार में ही चंद्रयान मिशन पर काम शुरू हुआ था। देश निरंतरता में आगे बढ़ता है। जो पहले दौड़ता है, वह भी अहम है और जो अंत में दौड़ता है, वह भी अहम है। यह देश की उपलब्धि है, लेकिन इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।’