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Khabron Ke Khiladi: ‘भाजपा कठिन सवाल पहले हल करती है’, सत्तारूढ़ पार्टी की चुनावी रणनीति पर विश्लेषकों की राय

Khabron Ke Khiladi: ‘भाजपा कठिन सवाल पहले हल करती है’, सत्तारूढ़ पार्टी की चुनावी रणनीति पर विश्लेषकों की राय

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इस हफ्ते देश की आजादी का जश्न और लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी का भाषण खबरों में रहा, वहीं कुछ राज्यों में भाजपा के उम्मीदवारों की सूची को लेकर भी खूब चर्चा हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से साफ कहा कि अगले साल भी झंडारोहण वहीं करेंगे। उस पर सियासत हो रही है और पूछा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने लाल किले से जो कहा, क्या वह उनका विश्वास है या अति आत्मविश्वास? 

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अपने कुछ उम्मीदवारों का एलान कर दिया है। छत्तीसगढ़ में 21 और मध्य प्रदेश में 39 उम्मीदवारों के नाम का एलान हो चुका है। इन्हीं मुद्दों पर ‘खबरों के खिलाड़ी’ के विश्लेषकों ने अपने विचार रखे। 

‘खबरों के खिलाड़ी’ की इस कड़ी में आज हमारे साथ चर्चा के लिए मौजूद रहे वरिष्ठ विश्लेषक विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, हर्षवर्धन त्रिपाठी, बिलाल सब्जवारी, संजय राणा और गुंजा कपूर। इस दिलचस्प राजनीतिक चर्चा को अमर उजाला के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर शनिवार रात नौ बजे लाइव देखा जा सकेगा। आइए पढ़ते हैं इनकी चर्चा के कुछ प्रमुख अंश…

पूर्णिमा त्रिपाठी

‘यह प्रधानमंत्री का अति आत्मविश्वास नहीं है, वे हमेशा से ही इसी विश्वास के साथ बोलते रहे हैं। मजेदार बात ये रही कि उन्होंने साफ तौर पर खुद को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया और इस तरह से उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था को नकार दिया, जिसमें सांसद नेता का चुनाव करते हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में युवाओं, महिलाओं की बात की और साथ ही पसमांदा मुस्लिमों के बारे में बात की। इसके साथ ही उन्होंने यह साफ कर दिया है कि अगले चुनाव में उनका लक्ष्य किन मुद्दों पर रहने वाला है? इनमें परिवारवाद, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे शामिल हैं। उम्मीदवारों की लिस्ट की बात करें तो भाजपा की रणनीति में थोड़ा बदलाव तो हुआ है। कर्नाटक चुनाव में हार इसकी वजह हो सकती है। ऐसा लग रहा है कि भाजपा उम्मीदवारों के नामों का एलान कर चाहती है कि पहले से तैयारी की जा सके।’ 

गुंजा कपूर

‘मतदाता और करदाता देश को बनाते हैं। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री लाल किले से अपने भाषण में किसानों, टैक्सपेयर की बात करते हैं तो इसमें क्या गलत है? प्रधानमंत्री ने कहा कि वे अगले साल भी आएंगे, दरअसल वे देश को एक उम्मीद देना चाहते हैं। लाल किले से दिए जाने वाले प्रधानमंत्री के भाषण से ऐसी आशा की भी जाती है कि वे देशवासियों को एक उम्मीद दें, सपने दें। पीएम मोदी अपने कार्यकाल से आगे की बात करते आए हैं और इसमें कुछ भी सियासी नहीं है। अगर कोई नेता है तो उन्हें राजनीति तो करनी ही है तो स्वतंत्रता दिवस के भाषण की आलोचना करना गलत है….। जैसे-जैसे परिस्थिति बदलती हैं, वैसे ही आप अपनी रणनीति बदलते हैं। कर्नाटक में भाजपा ने अपने कुछ उम्मीदवारों को नजरअंदाज किया और वो कांग्रेस में चले गए, जिसका भाजपा को नुकसान हुआ। अब भाजपा की रणनीति में बदलाव दिख रहा है। भाजपा अपने कमजोर इलाकों पर फोकस कर रही है।’ 

बिलाल सब्जवारी

‘प्रधानमंत्री मोदी का जो व्यक्तित्व है, वह विपक्षी दलों पर हावी है, लेकिन जहां तक परंपरा की बात है तो अटल बिहारी वाजपेयी जिस परंपरा में विश्वास करते थे, उसमें हमेशा समग्र भारत के साथ ही विपक्ष के प्रति नरम और लचीला रवैया होता था। वह उनकी समावेशी राजनीति थी। वहीं, पीएम मोदी की राजनीति अलग तरह की है। कभी-कभी उनका विश्वास, अति-आत्मविश्वास में बदलता नजर आता है। जब वे विपक्ष पर हमलावर होते हैं तो उसमें वे अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरा का निर्वहन करने में नाकाम दिखते हैं। परिवारवाद और भ्रष्टाचार को लेकर सिर्फ विपक्षी दलों पर आरोप लगा देना सही नहीं है। पीएम मोदी की राजनीति में इंदिरा गांधी की छाप है और अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति पर पंडित नेहरू का प्रभाव था।’

‘जहां तक राजनीति में प्रयोगों की बात है तो भाजपा इसमें आगे रही है। कर्नाटक नतीजों के बाद यह बदलाव आया है। पार्टी को जिन सीटों पर कमजोर फीडबैक मिला है, उन सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। भाजपा सोशल इंजीनियरिंग की माहिर खिलाड़ी है, लेकिन विधानसभा चुनाव में स्थानीय क्षत्रप, पार्टी कैडर की पकड़ जैसे मुद्दे पर भी जीत मिलती है।’

संजय राणा

‘प्रधानमंत्री मोदी दूरदर्शी नेता हैं और यह बात उनके भाषणों में दिखती हैं। गांधी जी जब देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे तो उन्हें नहीं पता था कि देश कब आजाद होगा, लेकिन वे इसके लिए संघर्ष करते रहे। उसी तरह प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर देशवासियों से बात करते हुए राष्ट्र निर्माण की बात कर रहे थे। 2014 का चुनाव भी पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था और 2019 का चुनाव भी। अब 2024 का चुनाव भी उन्हीं के चेहरे पर लड़ा जाएगा और जनता के इस विश्वास को पीएम मोदी बखूबी समझते हैं। इंदिरा गांधी के बाद सबसे बड़े जननेता पीएम मोदी ही हुए हैं…। भाजपा ने कमजोर सीटों पर उम्मीदवारों के नामों का एलान इसलिए किया है ताकि उन पर ज्यादा मेहनत की जा सके और बेहतर तरीके से फोकस किया जा सके। कर्नाटक से सबक लेकर रणनीति में यह बदलाव किया गया है। विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार का चेहरा अहम होता है, इसलिए भी भाजपा ने अपनी रणनीति में यह बदलाव किया है।’

विनोद अग्निहोत्री

‘मौजूदा मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री स्वभाविक रूप से अगले चुनाव के लिए चेहरा होते हैं। लाल किले से प्रधानमंत्री के भाषण में जो विशेषता थी, वो ये कि उनका ये भाषण पूरी तरह से 2024 के चुनाव को ध्यान में रखकर दिया गया। प्रधानमंत्री जानते हैं कि सामने वाले का मनोबल कब और कैसे तोड़ना है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी और अब लाल किले से भी उन्होंने जो भाषण दिया है, उसने विपक्ष का मनोबल तोड़ने की कोशिश की। पीएम के आत्मविश्वास का कारण, भाजपा जैसे मजबूत संगठन वाली पार्टी, आरएसएस जैसा संगठन, उनका लोकप्रिय चेहरा जैसे कारक हैं। हालांकि, पीएम मोदी के लाल किले से दिए भाषण में वैश्विक अपील का अभाव था, यह भाषण चुनाव तक सीमित रहा।’ 

‘भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले के विधानसभा चुनाव को बहुत गंभीरता से ले रही है। भाजपा ने इस बार उम्मीदवारों को पूरा समय दिया है चुनाव की तैयारियों का। साथ ही इससे डैमेज कंट्रोल का समय मिल जाएगा। भाजपा नहीं चाहती कि विधानसभा चुनाव की हार से कार्यकर्ताओं के मनोबल पर बुरा असर पड़े। यही वजह है कि भाजपा ने इस बार चुनाव की तैयारी पहले ही शुरू कर दी है।’ 

हर्षवर्धन त्रिपाठी

‘राजनीति हो या जीवन का कोई भी पक्ष, हर जगह सरप्राइज अहम होता है। अगर आप विपक्षी को चौंकाने की ताकत रखते हैं तो यह अहम बात है। संघ, भाजपा के विचार के लिए मध्य प्रदेश अहम है। भाजपा कठिन सवाल पहले हल करने की कोशिश कर रही है। यही वजह है जल्द उम्मीदवारों का एलान किया गया है। छत्तीसगढ़ में भाजपा, कांग्रेस के सामने टिकती नहीं दिख रही है। वहां भाजपा नेतृत्व के अभाव से जूझ रही है।’ 

‘भाजपा के लिए राजस्थान आसान है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर अमित शाह का फोकस है। मध्य प्रदेश में फिलहाल शिवराज सिंह चौहान ही चेहरा हैं और वहां भाजपा के लिए संकट, चेहरे का नहीं, संतुलन का है। भाजपा ने एमपी में जिन नेताओं को टिकट दिया है, वो जिला स्तर के नेता हैं और उनके पास खुद के 20-25 हजार वोट हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा को उम्मीद है कि उनकी सरकार ने जो आदिवासियों के लिए काम किए हैं और आदिवासी वर्ग से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया है, उसका पार्टी को फायदा मिलेगा।’

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