खबरों के खिलाड़ी की नई कड़ी में एक बार फिर आपका स्वागत है। हफ्ते की बड़ी खबरों के सधे विश्लेषण के साथ हम आपके सामने प्रस्तुत हैं। यह दिलचस्प विश्लेषण आप अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर लाइव हो चुकी है।इसे रविवार सुबह 9 बजे भी देख सकते हैं।
इस हफ्ते दो बड़ी खबरें चर्चा में रहीं, एक पीएम मोदी का यूएस दौरा, जहां उनका शानदार स्वागत हुआ। दूसरी बड़ी घटना पटना में विपक्ष की बैठक रही। नीतीश कुमार की अगुआई में 17 पार्टियों के नेता पटना में जुटे। हालांकि, विपक्षी बैठक में अरविंद केजरीवाल की खटास भी सामने आई….। इन्हीं अहम मुद्दों और इनके निहितार्थ पर चर्चा के लिए आज हमारे साथ मौजूद रहे वरिष्ठ पत्रकार पंकज शर्मा, विनोद अग्निहोत्री, सुमित अवस्थी, पूर्णिमा त्रिपाठी, हर्षवर्धन त्रिपाठी और अवधेश कुमार। पढ़िए इनकी चर्चा के अहम अंश…
सुमित अवस्थी
एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा सुर्खियां बटोर रहा है, दूसरी तरफ विपक्ष की बैठक की खबर कहीं दबकर रह गई है। सवाल उठ रहा है कि क्या विपक्षी बैठक की टाइमिंग गलत हो गई है? विपक्षी बैठक के दौरान अध्यादेश पर विपक्षी पार्टियों का समर्थन ना मिलने से केजरीवाल की नाराजगी की खबरें भी सामने आईं। कहा जा रहा है कि अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए विपक्षी पार्टियां साथ आ रही हैं। हालांकि, जिस तरह से भाजपा इस पर प्रतिक्रिया दे रही है, उसे देखते हुए ये लग रहा है कि भाजपा भी इसे लेकर परेशान है। जो पार्टियां केंद्र में साथ आ रही हैं, उनमें राज्यों के स्तर पर टकराव है। बंगाल इसका उदाहरण है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि विपक्षी एकता कितनी मजबूत रह पाएगी।
पूर्णिमा त्रिपाठी
प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता इतनी ज्यादा है कि वे जहां भी होते हैं तो मीडिया में उन्हें प्राथमिकता मिलती ही है। विपक्ष की बैठक की खबरें भले ही अखबारों में छठे-सातवें पन्ने पर छपी हों, लेकिन इसकी अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता। सभी पार्टियां साथ आई हैं और ये संदेश दिया है कि वे एकसाथ हैं और 2024 का लोकसभा चुनाव साथ लड़ेंगी। पीएम मोदी के दौरे में उनके शानदार स्वागत की बातें हो रही हैं लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जब 1971 के युद्ध के बाद इंदिरा गांधी अमेरिका दौरे पर गईं थी तो तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उन्हें रिसीव करने आए थे। जेल जाने से बचने के डर से गठबंधन करने की बात कही है, लेकिन अगर ऐसा है तो ये दल भाजपा के साथ भी गठबंधन कर सकते थे। अगर इन दलों ने कठिन राह चुनी है तो इसकी वजह विचारधारा की लड़ाई ही है।
अवधेश कुमार
विपक्षी पार्टियां हमारे देश में लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ रही हैं। जिस बिहार में बड़े-बड़े घोटाले हुए, जो राज्य विकास के मामले में पिछड़े हुए हैं, वहां के नेता लोकतंत्र के प्रतीक हो जाते हैं! ममता बनर्जी के राज में लोग मारे जा रहे हैं, वे लोकतंत्र की प्रतीक हो गई हैं। प्रधानमंत्री के पीछे करोड़ों लोग खड़े हैं, लेकिन वे अलोकतांत्रिक हो गए हैं! लोकतंत्र तो वह है जहां आम आदमी की नेताओं तक, प्रशासन तक सीधी पहुंच हो, लेकिन इसकी कोई मुहिम नहीं चल रही है। विपक्ष अगर सच में लोकतंत्र के लिए लड़ रहा होता तो लोग उनके समर्थन में होते।
एक व्यक्ति इस संकल्प के साथ चला है कि वह भारत को विश्व की एक महाशक्ति बनाकर खड़ा करेगा। अमेरिका बिना किसी शर्त के भारत का साथ देने के लिए तैयार है और पीएम मोदी के दौरे से पूरी दुनिया में संदेश गया है। विपक्ष को इस मौके पर देश के साथ एकजुटता दिखानी चाहिए थी…। भारत में जब मजबूत पार्टी के हाथ में गठबंधन रहा है, तभी सरकार ठीक से चल पाई है।
पंकज शर्मा
विपक्ष जो भी करे वो अवसरवादिता है और सत्ता पक्ष जो करे उसमें अवसरवादिता नहीं है, ये गजब स्थिति है। विपक्ष अगर इकट्ठा हो रहा है तो सबसे बड़ी चिंता सत्ता पक्ष के लिए ये है कि 450 सीटों पर अगर साझा उम्मीदवार खड़े हो गए तो उनका दोबारा सत्ता में आना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए विपक्षी एकता को तोड़ने की कोशिश की जा रही है। दिल्ली में केंद्र के अध्यादेश को लेकर कांग्रेस में अलग-अलग राय है। यही वजह है कि पार्टी आप को समर्थन देने से दूरी बना रही है। पीएम मोदी के दौरे की सफलता को लेकर जो बातें की जा रही हैं, उसमें ये भी पूछा जाना चाहिए कि भारत ने जो तीन बिलियन का ड्रोन सौदा किया है, उसमें भारत दोगुनी कीमत पर ड्रोन की खरीददारी कर रहा है, जब अमेरिका सेना उसी कंपनी से आधे दाम में ड्रोन खरीदती है। इसे लेकर भी सवाल पूछे जाने चाहिए।
हर्षवर्धन त्रिपाठी
पटना में हुई बैठक विपक्षी एकता के लिहाज से बहुत बड़ी बात है। विपक्ष बड़ी बेइज्जती से बच गया कि जीतनराम मांझी बैठक से पहले ही निकल गए। विपक्षी बैठक में संयोजक को लेकर अंतिम फैसला नहीं हो पाया है। नीतीश कुमार के नाम पर एकराय नहीं बन पाई है। खास बात ये है कि ये सभी पार्टियां राज्य स्तर पर एक दूसरे से लड़ रही हैं। पीएम मोदी के अमेरिका दौरे की बात करें तो पहले दुनिया जो तय करती थी, उसमें भारत की भूमिका बहुत ज्यादा नहीं थी। देश जब गुटनिरपेक्ष था तो उस वक्त देश में कोई गुट बनाने की ताकत ही नहीं थी। संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव नहीं है, जो गुटनिरपेक्ष देशों ने पारित कराया हो। रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को 45 मिनट तक इंतजार कराया था। 45 मिनट निक्सन कुछ नहीं कर रहे थे, लेकिन इंदिरा को इंतजार करना पड़ा। ऐसे में आज की तुलना उस वक्त से कैसे की जा सकती है? आज रूस और अमेरिका से हमारे संबंध अच्छे हैं। आज इजरायल के साथ हमारे कई अहम समझौते हैं। ना सिर्फ इजरायल या फिलस्तीन, हर देश भारत के साथ समझौते करना चाहता है। पीएम मोदी के अमेरिका दौरे में हुए सौदों में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ ही को-प्रोडक्शन की बात हुई है। यह अहम है।
विनोद अग्निहोत्री
विपक्ष पार्टियों में आपस में खींचतान की बात की जा रही है तो उस पर मैं कहना चाहता हूं कि विविधता तो इस देश की ताकत है। विपक्ष में विसंगति आज से नहीं है, हमेशा से रही है। एनडीए विसंगति के बावजूद चला। ऐसे ही यूपीए की सरकार भी चली। वहां भी दिक्कतें थीं। कल की विपक्षी बैठक, शादी से पहले का रोका था और उस रोके में फूफा केजरीवाल नाराज हैं। शिमला की बैठक अहम होगी, उसमें संयोजक और सीटों के बंटवारे पर बात हो सकती है। बीजेपी छोड़कर जो गए हैं, बीजेपी अब फिर से उन्हें टटोल रही है। भाजपा अकाली दल, चिराग पासवान, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक आदि नेताओं से बात कर रही है। भाजपा को भी विपक्षी एकता की चिंता है।
मनमोहन सरकार ने अमेरिका के साथ एक बड़ी डील की थी, लेकिन उस वक्त भी विपक्ष ने उसका कड़ा विरोध किया था। अगर हमारे अमेरिका के साथ संबंध इतने ही अच्छे हैं तो बीते नौ साल में न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की बैठक क्यों नहीं बुलाई जा सकी है? इंदिरा गांधी को निक्सन ने इंतजार कराया था, ये बात सही है, लेकिन जब दोनों की मुलाकात हुई तो इंदिरा ने निक्सन से ऐसे बात की थी जैसे कोई टीचर, स्टूडेंट से बात करती है। उसके बारे में भी बात होनी चाहिए। नेता पहले भी देश में मजबूत रहे हैं। तरक्की निरंतरता में मिलती है। जो नेहरू ने किया, आज मोदी उस मुकाम को आगे बढ़ा रहे हैं। यह रिले रेस है।