अहमद अली
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
लखीमपुर शहर की 159 साल पुरानी रामलीला में विभिन्न किरदार निभाने वाले पात्रों के कपड़े सिलने का जिम्मा शहर का एक मुस्लिम परिवार निभाता आ रहा है। 159 साल पहले इलाही बख्श के परिवार में शुरू हुआ भगवान श्रीराम की इबादत का सिलसिला अब भी जारी है। इलाही बख्श के परिवार की तीसरी पीढ़ी के अहमद अली बताते हैं कि उनके पुरखे इस काम को अल्लाह की इबादत बताते थे। उन्होंने यह हुनर अपने चाचा मुन्ने मियां से विरासत में पाया है। पुरखों के दिए संस्कारों की सरजमीं पर वह आज भी उसी जोश-ओ-खरोश के साथ रामलीला के पात्रों के कपड़े सिलकर भाईचारे की मिसाल पेश कर रहे हैं।
रामलीला आयोजक कमेटी सेठ गया प्रसाद ट्रस्ट के मुख्य सरवराकार विपुल सेठ बताते हैं कि लखीमपुर की रामलीला गंगा-जमुनी संस्कृति की जीती-जागती मिसाल है। इसमें भगवान राम सहित अन्य किरदारों के वस्त्रों को सिलने वाले अली अहमद इसे अल्लाह की इबादत बताते हैं। इससे पूर्व अली अहमद के चाचा मुन्ने मियां रामलीला के पात्रों के वस्त्र तैयार करते थे। उन्होंने करीब 65 साल तक यही कार्य करते हुए सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया। उनके इंतकाल के बाद करीब पांच साल से उनके भतीजे अली अहमद इस कार्य को बखूबी करते आ रहे हैं।
ये भी पढ़ें- Bareilly: जन्मदिन पर छात्रा को दिया जिंदगी भर का दर्द… ट्रेन से हाथ-पैर कटे; पढ़ें वारदात की पूरी कहानी
अली अहमद ने बताया कि उनके चाचा मुन्ने मियां ने यह हुनर उन्हें सौंपा। अली अहमद इस ऐतिहासिक रामलीला में केवल पात्रों के कपड़े ही नहीं सिलते हैं, बल्कि वह रामलीला के अंतिम दिन तक रुकते हैं और अन्य पात्रों के साथ ही मथुरा भवन से विदा लेते हैं। वह भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, गुरु वशिष्ठ, राजा दशरथ, देवऋषि नारद, लंकापति रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद और सभी पात्रों के कपड़े की खूबसूरत डिजाइनिंग करते हैं। वह यह काम बड़ी तन्मयता से करते हैं।