NDA vs INDIA
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए कड़े कदम उठाने के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि उनके उपाय उस काढ़े की तरह होते हैं जो पीने में थोड़े कड़वे होते हैं, लेकिन उसका शरीर के स्वास्थ्य पर बेहतर असर पड़ता है। पीएम की बातों का असर सही होता हुआ भी दिखाई पड़ा जब कोरोना काल के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं ढहने लगीं, जबकि उसी दौर में भारत बेहतर विकास करते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
आज जब केंद्र सरकार ने गैस सिलेंडर की कीमतों में 200 रुपये प्रति गैस सिलेंडर की सब्सिडी देने की घोषणा की तो यह प्रश्न उठने लगा कि क्या केंद्र सरकार ने भी चुनाव जीतने के लिए अब लोकलुभावन घोषणाओं पर विश्वास करने का विकल्प ही सही समझा है। यह प्रश्न भी उठने लगा है कि ‘मुफ्त रेवड़ियां’ बांटने की जिस सोच को पीएम ने लाल किले से देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाला बताया है, अब वह स्वयं उसी रास्ते को अपनाने के लिए मजबूर हो गई है? क्या यह विपक्षी दलों के गठबंधन का असर माना जा रहा है जैसा कि विपक्ष दावा कर रहा है।
महंगाई चुनाव में बड़ा मुद्दा
दरअसल, हाल ही में हुए एक सर्वे में लोगों से यह प्रश्न किया गया था कि अगली बार चुनाव में वे सबसे बड़ा मुद्दा क्या देखते हैं। सर्वे में भाग लेने वाले 72 प्रतिशत लोगों ने यह स्वीकार किया था कि महंगाई चुनाव में बड़ा मुद्दा साबित होने वाला है। यानी यह संकेत मिलने लगे हैं कि महंगाई से उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ रही है और चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है। यही कारण है कि समय रहते सरकार ने लोगों को राहत पहुंचाकर इस मुद्दे को कमजोर करने की कोशिश की है।
कर्नाटक-हिमाचल प्रदेश का असर
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस ने मुफ्त रेवड़ियों का बड़ा मुद्दा उछाला था। उसने लोगों को सस्ता गैस सिलेंडर देने, बेरोजगारी भत्ता देने और महिलाओं को कई योजनाओं का लाभ देने की घोषणा की। माना जाता है कि इन चुनावों में कांग्रेस को इन घोषणाओं का लाभ मिला और उसने जीत हासिल कर लिया।
कांग्रेस ने इस जीत से उत्साहित होकर इस साल में होने वाले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों से पहले ही बड़ी-बड़ी मुफ्त घोषणाएं करनी शुरू कर दी हैं। इसमें प्रियंका गांधी के द्वारा मध्य प्रदेश में 500 रूपये में सिलेंडर देना और महिलाओं को हर महीने 1500 रूपये की आर्थिक सहायता पहुंचाना भी शामिल है।
माना जा रहा है कि भाजपा ने इन घोषणाओं का असर स्वीकार कर लिया है। उसने यह मान लिया है कि यदि उसे इस दौड़ में बने रहना है तो उसे भी विपक्षी दलों की तरह मुफ्त की घोषणाएं करनी पड़ेंगी। इसी का असर हुआ कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गैस सिलेंडर की कीमतें 450 रूपये करने की घोषणा कर दी। लाडली बहनों को आर्थिक सहायता राशि भी बढ़ाकर 1250 कर दी गई है। इसे बढ़ाकर 3000 तक करने का उन्होंने वादा भी कर दिया है। भाजपा इन घोषणाओं के जरिए कांग्रेस के दांव को भोथरा करने की योजना बना रही है।
केंद्र भी उसी रास्ते पर
राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार ने अमर उजाला से कहा कि स्वयं केंद्र सरकार भी अब उसी रास्ते पर कदम बढ़ाते हुए दिख रही है। केंद्र ने गैस सिलेंडर के दाम कम कर उसी दिशा में पहला कदम उठाया है। चर्चा है कि अब पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी के साथ-साथ किसानों को हर साल दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि भी बढ़ाने पर विचार हो रहा है। यदि ऐसा होता है तो माना जाएगा कि केंद्र सरकार भी चुनावी रेवड़ियों के दबाव में आ गई है। लेकिन क्या मोदी सरकार सच में विपक्ष के दबाव में आ गई है, इस प्रश्न के सही जवाब के लिए अभी कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।