सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मणिपुर में दो महिलाओं से सामूहिक दुष्कर्म के बाद उन्हें निर्वस्त्र परेड कराना भयानक अपराध है। शीर्ष अदालत ने कहा, पुलिस ने दोनों महिलाओं को उग्र भीड़ को सौंप दिया और चुपचाप खड़ी रही। यह सुनने के बाद हम नहीं चाहते कि पुलिस मामले की जांच संभाले। कोर्ट ने मणिपुर पुलिस से अब तक दर्ज प्राथमिकियों, उनमें उठाए कदमों की पूरी जानकारी मंगलवार की सुनवाई में रखने को कहा। कोर्ट ने संकेत दिया कि केंद्र व मणिपुर सरकार के वकीलों को सुनने के बाद वह वहां स्थिति की निगरानी के लिए एसआईटी या पूर्व जजों की समिति गठित कर सकता है।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ वीडियो में नजर आने वाली दोनों महिलाओं की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीड़िताओं ने मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
14 दिन बाद क्यों दर्ज हुई एफआईआर
पीठ ने पूछा, महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराने की वारदात चार मई की है, तो पुलिस ने 14 दिन बाद 18 मई को मामला क्यों दर्ज किया? पुलिस आखिर क्या कर रही थी? एक एफआईआर 24 जून यानी एक महीने तीन दिन बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट में क्यों ट्रांसफर की गई? सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा, अगर शीर्ष अदालत हिंसा के मामलों में जांच की निगरानी करने का फैसला करती है, तो केंद्र सरकार को इससे आपत्ति नहीं है। अटार्नी जनरल ने शीर्ष अदालत से सीबीआई जांच की व्यक्तिगत रूप से निगरानी की भी पेशकश की। पीठ ने मणिपुर हिंसा से जुड़ी सभी याचिकाओं को एक साथ कर मंगलवार के लिए सूचीबद्ध किया।
छह हजार एफआईआर को अलग अलग श्रेणी में बांटने की जरूरत
पीठ ने कहा, हमें छह हजार एफआईआर को अलग-अलग श्रेणी में बांटने की जरूरत पड़ेगी। कितनी जीरो एफआईआर हैं, कितनी गिरफ्तारियां हुई, कितने न्यायिक हिरासत में हैं, कितने मामले 156(3) के तहत दर्ज किए गए, कितने धारा 164 के बयान दर्ज किए गए और कितनी कानूनी सहायता दी जा रही है, इन सभी बातों को जानने की जरूरत है। शीर्ष कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए व्यापक तंत्र विकसित करने का आह्वान किया।
दूसरी घटनाओं से तुलना कर मणिपुर की घटना को उचित नहीं ठहरा सकते
पीठ ने इसी मामले में वकील बांसुरी स्वराज की हस्तक्षेप याचिका पर नाराजगी जाहिर की। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं, लेकिन मणिपुर की स्थिति अलग है। इसे अन्य घटनाओं से तुलना करके उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
एसआईटी की संरचना पर मांगी राय
पीठ ने एसआईटी गठन की स्थिति में उसकी संरचना पर राज्य और केंद्र सरकारों की राय भी मांगी। पीठ ने कहा, हमें अपने-अपने नाम भी दें और याचिकाकर्ताओं के सुझाए नामों पर भी राय दें।
जिन्होंने सब कुछ गंवा दिया, उन्हें राहत की जरूरत
कपिल सिब्बल (पीड़ित महिलाओं के वकील) : पुलिस अपराध को अंजाम देने वालों के साथ मिली हुई है। वही दोनों महिलाओं को भीड़ के पास ले गई। सीबीआई जांच से भरोसा पैदा नहीं होगा। जांच एसआईटी से होनी चाहिए।
वकील इंदिरा जयसिंह : विश्वास निर्माण का एक तंत्र लागू किया जाना चाहिए, ताकि ऐसी सभी दुष्कर्म पीड़िताएं अपनी बात कहने के लिए आगे आएं।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी : कोर्ट जो जानकारी मांग रहा है, उसे उपलब्ध कराने के लिए और समय दिया जाए।
पीठ : समय खत्म हो रहा है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता : सभी जानकारी एक दिन में देना तार्किक रूप से संभव नहीं। करीब छह हजार एफआईआर दर्ज हैं।
पीठ : एफआईआर ऑनलाइन है। जिन्होंने प्रियजनों समेत सब कुछ गंवाया है, सरकार को उन्हें राहत देने की जरूरत है। राज्य सरकार दर्ज जीरो एफआईआर की संख्या बताए। यह भी जानना चाहते हैं कि पुनर्वास के लिए क्या पैकेज दिया जा रहा है?