एयरपोर्ट पर संदिग्ध लोगों की जांच करते सीआईएसएफ के जवान।
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मणिपुर में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। वहां हिंसा कम होने का नाम नहीं ले रही है। इस बीच, सामने आया है कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) मणिपुर में इंफाल हवाईअड्डे पर और सुरक्षाकर्मी तैनात करने के लिए अपने मंत्रालय के संपर्क में है। बता दें कि यह सुरक्षा बल गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्य कर्ता है। उसकी जिम्मेदारी देशभर के औघोगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा करना है।
इंफाल हवाईअड्डे के एक अधिकारी ने इस बारे में जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि सीआईएसएफ के वरिष्ठ अधिकारी नियमित आधार पर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने इंफाल हवाईअड्डे का दौरा कर रहे हैं। हालांकि अधिकारी से जब हवाईअड्डे पर सीआईएसएफ कर्मियों की वर्तमान संख्या और स्थिति और उसके आधार पर आवश्यकता वाले कर्मियों की संख्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह नहीं बताया कि अभी इस हवाईअड्डे पर कितने सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और इसकी संख्या कितनी बढ़ाने की मांग की जा रही है। अधिकारी ने कहा कि हम आम तौर पर सुरक्षा कारणों से अपने कर्मियों की संख्या साझा नहीं करते हैं।
इंफाल हवाईअड्डे के बाहर हुआ था प्रदर्शन
इससे पहले, इंफाल हवाईअड्डे के बाहर शनिवार को बड़ा प्रदर्शन हुआ था और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाकर्मियों को आंसू गैस के गोले दागने पड़े थे। विरोध और हिंसा को देखते हुए हवाई अड्डे के पास शांति बनाए रखने के लिए मणिपुर सशस्त्र पुलिस और रैपिड एक्शन बटालियन के जवानों को तैनात किया गया है।
बता दें कि इंफाल हवाई अड्डा भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (एएआई) के अंतर्गत आता है। इंफाल हवाईअड्डे के आंकड़ों के अनुसार, यहां से एक दिन में लगभग 30 उड़ानें संचालित होती हैं। साथ ही एक दिन में लगभग तीन हजार यात्रियों की आवाजाही होती है।
हिंसा की शुरुआत कब हुई?
मौजूदा तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।
इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।
एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। अब तक इस हिंसा के चलते 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तीन हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।