अजित पवार
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महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा के लिए सोमवार को मुंबई में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने रविवार को यह जानकारी दी। कोल्हापुर शहर में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मराठा समुदाय के कई लोग अमीर थे, लेकिन बहुत से लोग गरीब थे जिन्हें मदद की जरूरत है।
अजित पवार ने कहा, मराठा समुदाय को आरक्षण देते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अन्य पिछड़ा वर्ग प्रभावित न हो। केवल चर्चा और बैठकों से ही इस मुद्दे का समाधान होगा। इसलिए आरक्षण मुद्दे पर चर्चा के लिए सोमवार को मुंबई में सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है।
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे समुदाय को कुनबी दर्जा देने की मांग को लेकर करीब दो सप्ताह से भूख हड़ताल पर हैं। मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी दर्जा मिलने के बाद वे ओबीसी आरक्षण का लाभ उठा सकेंगे। हालांकि, इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार और जरांगे के बीच कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है।
क्या है मराठा आरक्षण का मुद्दा
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग लंबे समय से हो रही है। साल 1997 में मराठा संघ और मराठा सेवा संघ ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए पहली बार बड़ा आंदोलन किया। आंदोलनकारियों का कहना है कि मराठा उच्च जाति के नहीं बल्कि मूल रूप से कुनबी यानी कृषि समुदाय से जुड़े थे।
मौजूदा स्थिति की बात करें तो मराठा समुदाय महाराष्ट्र की आबादी का लगभग 31 प्रतिशत है। यह एक प्रमुख जाति समूह है लेकिन फिर भी समरूप यानी एक समान नहीं है। इसमें पूर्व सामंती अभिजात वर्ग और शासकों के साथ-साथ सबसे ज्यादा वंचित किसान शामिल हैं। राज्य में अक्सर कृषि संकट, नौकरियों की कमी और सरकारों के अधूरे वादों का हवाला देते हुए समाज ने आंदोलन किये हैं।
2018 में महाराष्ट्र विधानमंडल से मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16% आरक्षण का प्रस्ताव वाला एक विधेयक पारित किया गया। विधेयक में मराठा समुदाय को सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया। विधानमंडल में पारित होने के बाद मराठा आरक्षण का मामला अदालती हो गया। जून 2019 में बम्बई उच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन सरकार से इसे राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुसार 16% से घटाकर 12 से 13% करने को कहा।
इस आरक्षण को बड़ा झटका तब लगा जब मई 2021 को जब सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया और कानून को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीलिंग का उल्लंघन कर दिया गया था।