मुरादाबाद। बिलारी के स्योंडारा निवासी हुकुम सिंह(काल्पनिक नाम) 60 वर्ष के हैं। उन्हें पिछले पांच साल से भूख कम लगने की समस्या थी। उन्होंने उम्र का तकाजा मानकर इसे नजरअंदाज किया। धीरे-धीरे वजन कम होने लगा। अब उनके जोड़ों में भी दर्द रहता है, शरीर पीला पड़ने लगा है। डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने जांच कराई तो पता चला कि शरीर में हेपेटाइटिस-सी का संक्रमण है। अब जिला अस्पताल से उनका इलाज चल रहा है।
सिर्फ हुकुम सिंह ही नहीं बल्कि हर दिन ऐसे 20 मरीज जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं, जिन्हें हेपेटाइटिस-सी है। वहीं जिले में निजी चिकित्सकों के यहां भी हर दिन औसतन 12 मरीज पहुंच रहे हैं। ऐसे लोग जो भूख कम लगना, वजन कम होना जैसे लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं। उन्हें हेपेटाइटिस-सी हो सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक यह बीमारी धीरे-धीरे एक बड़ी आबादी को अपनी जद में ले रही है। चूंकि इसका असर फौरन दिखाई नहीं देता इसलिए लोग अंजान रहते हैं। कई वर्ष बाद लिवर के खराब होने, पानी भरने के मामले में जब ऑपरेशन किया जाता है, तो पता चलता है कि व्यक्ति कई सालों से हेपेटाइटिस-सी की चपेट में है।
हालांकि हेपेटाइटिस-ए, बी, सी, डी व ई सभी बीमारियों के लक्षण लगभग एक जैसे हैं लेकिन मुरादाबाद क्षेत्र में हेपेटाइटिस-सी के मरीज ज्यादा हैं। जनवरी से 27 जुलाई 2023 तक 4045 मरीज जिला अस्पताल पहुंचे हैं। इनमें भी एक ही क्षेत्र के 1500 से ज्यादा मरीज हैं। बिलारी क आसपास के गांवों में हेपेटाइटिस के रोगी पाए जा रहे हैं। इनकी संख्या पर अंकुश लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन नतीजा सिफर है। इसका कारण लोगों का खराब खान-पान व साफ सफाई के प्रति संवेदनशील न होना है।
रक्त संपर्क से ही फैलता है हेपेटाइटिस-बी और सी
डॉक्टरों का कहना है कि हेपेटाइटिस-बी यानी काला पीलिया और भी ज्यादा खतरनाक है। इसका वायरस अधिक प्रभावशाली होने के कारण व्यक्ति का जान बचानी मुश्किल हो जाती है। गनीमत है कि मुरादाबाद क्षेत्र में ऐसे मरीज 10 से 15 ही हैं। हेपेटाइटिस-बी और सी दोनों रक्त संपर्क से ही फैलते हैं। दोनों प्रकार का वायरस संक्रमित व्यक्ति का इंजेक्शन दूसरे व्यक्ति को लगाने, शेविंग ब्लेड दोबारा इस्तेमाल करने, संक्रमित व्यक्ति का रक्त चढ़ाने, सावधानी का ध्यान रखे बिना टैटू बनवाने, शारीरिक संबंध बनाने, अप्रशिक्षित चिकित्सक से दांतों की सफाई कराने से फैल सकता है। संक्रमित माता से बच्चे में जा सकता है।
बाहर न खर्चें 10 हजार, जिला अस्पताल में लें उपचार
वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. एनके मिश्र का कहना है कि जिन लोगों को लक्षण महसूस हों वे फौरन जिला अस्पताल पहुंचें और अपनी जांच कराएं। निजी अस्पतालों में जहां चार से पांच हजार रुपये जांच में खर्च होते हैं। वहीं 84 दिन के उपचार में करीब नौ हजार रुपये खर्च हो जाते हैं। जिला अस्पताल में ये दोनों सुविधाएं निशुल्क उपलब्ध हैं। जनवरी से अब तक 3752 लोगों को निशुल्क उपचार दिया जा चुका है। जबकि 293 लोगों का इलाज चल रहा है।
बचाव के उपाय
घर से बाहर शेविंग न कराएं
किसी भी अप्रशिक्षित डॉक्टर से इंजेक्शन न लगवाएं
टैटू बनवाना है तो किसी विशेषज्ञ आर्टिस्ट से ही बनवाएं
रक्त लेने व देने से पहले जांच जरूर करा लें