मुरादाबाद। देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में मुरादाबाद शैली की रामलीला प्रसिद्ध है। इसके मंचन के लिए पीतलनगरी में तैयारियां शुरू हो गई हैं। मुरादाबाद की समितियों से जुड़े दूसरे जनपदों के कलाकार भी शहर में आ गए हैं। समिति अध्यक्षों का कहना है कि मुरादाबाद में करीब 46 समितियां रामलीला का मंचन करवाती हैं।
15 अक्तूबर से शुरू होने वाली रामलीलाओं में अभिनय के लिए रिहर्सल शुरू हो गया है। कलाकार प्रतिदिन समय निकालकर रिहर्सल कर रहे हैं। प्रत्येक रामलीला में करीब 40 से 50 कलाकार अभिनय करते हैं। प्रदीप शर्मा ने बताया कि मुरादाबाद शैली की रामलीला को तीन लोगों ने शुरू किया था। इसमें रामसिंह चित्रकार, डॉ. ज्ञान प्रकाश सोती और बलवीर पाठक शामिल थे। इन तीनों की भूमिका मुरादाबाद शैली में अलग-अलग थी।
राम सिंह चित्रकार मंच सज्जा और मेकअप में पारंगत थे। डॉ. ज्ञान प्रकाश सोती निर्देशन और प्रबंधकीय व्यवस्था देखते थे। बलवीर पाठक ने कई ग्रंथों का अध्ययन करने के बाद स्कि्रप्ट लिखी। चीफ डायरेक्टर होने के अलावा बैक ग्राउंड कमेंट्री बलवीर पाठक करते थे। पहली रामलीला वर्ष 1966 में दिल्ली में हुई थी। उस वक्त मैं कक्षा दस में पढ़ता था और मैंने लक्ष्मण की भूमिका निभाई थी।
क्या है मुरादाबाद शैली
मुरादाबाद शैली की विशेषता यह है कि इसमें पार्श्व वाचन है। यानि कि इसमें बैकग्राउंड से डॉयलॉग बोले जाते हैं। कलाकार सिर्फ लिप्सिंग करते हैं। दूसरी विशेषता है कि इसमें संवाद बहुत प्रभावशाली हैं। इसमें मूलत: रामचरित मानस है। इसके अलावा साकेत महाकाव्य, पंडित राधेश्याम शर्मा कथा वाचक व अन्य श्रोतों से जानकारी ली गई है। यह स्कि्रप्ट खड़ी बोली में है। वेशभूषा आधुनिक है। मेकअप उच्च कोटि का होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि प्रदर्शन शुरू होने के बाद कोई ब्रेक नहीं होता है। अभिनय की निरंतरता बनी रहती है। बैकग्राउंड कमेंट्री के फायदे हैं कि इसमें उच्चारण दोष नहीं होता है।