मुरादाबाद। इंसानियत को बचाने के लिए त्याग और बलिदान (कुर्बान) होने का जज्बा जरूरी है। इमाम हुसैन ने इस्लाम और इंसानियत को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी देकर यही संदेश दिया है। यह बात सैयद मौलाना तनवीर अब्बास आजमी ने मोहर्रम की चौथी तारीख के मौके पर सुबह मोहल्ला लाकड़ीवालान में डॉ. तनवीर नकवी के मकान पर हुई मजलिस को खिताब करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन ने अपने 71 साथियों के साथ कर्बला में अपनी जान की कुर्बानी देकर बता दिया कि जब तक कुर्बानी का जज्बा हमारे अंदर न होगा तब तक हम इंसानियत को नहीं बचा सकते। उन्होंने कर्बला का जिक्र करते हुए कहा कि इमाम हुसैन की बहन जैनब ने देखा कि यजीद कर्बला में लाखों का लश्कर बुला रहा था। तब जैनब ने कहा कि भइया क्या हमारा कोई चाहने वाला नहीं। इसके बाद इमाम हुसैन ने अपने बचपन के दोस्त हबीब इब्ने मजाहिर को खत लिख कर कर्बला बुलाया और यह दोस्ती ही थी जो वह अपनी जान की कुर्बानी देने के लिए कर्बला तक आ गए और अपनी जान को कुर्बान किया। उन्होंने कहा कि उनके साथ हुई ज्यादतियों को सुन कर अजादारों में या हुसैन, या हुसैन की सदाएं बुलंद होने लगीं। इससे पहले मजलिस में हाजी शबी हैदर ने मर्सिया ख्वानी की और हैदर ने सलाम पेश किया।
दूसरी मजलिस इमामबाड़ा मीर सआदत अली स्थित चौमुखापुल पर, तीसरी मजलिस मोहल्ला लाकड़ीवालान स्थित इमामबाड़ा हकीम फरजंद अली पर हुई। यहां भी यहां भी मौलाना तनवीर अब्बास आजमी ने मजलिस को खिताब किया। मजलिस हाजी नसीम हैदर जैदी, हाजी कायम हसनैन, मोहम्मद अब्बास एडवोकेट, एजाज हैदर, हफीज आरिफ रजा, सईद, जिम्मी नकवी, जावेद, यावर, शावेज नकवी, जिया अब्बास, मोहम्मद जरी नकवी, गोहर मिर्जा, अमीरूल हसन जाफरी, जक्कन, गुलरेज हैदर, अहमद हैदर सहित काफी संख्या में अजादार मौजूद रहे।