Katalin Kariko-Drew Weissman
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दो साल पहले दुनिया सदी की सबसे विनाशकारी महामारी से जूझ रही थी। चीन से निकला कोरोना नामक दैत्य पूरी मानव जाति को निगल जाने पर आमादा था। राह चलते लोगों की जानें जा रही थीं। अस्तित्व के संकट के मुहाने पर खड़े विश्व में महामारी से बचाव के उपाय युद्धस्तर पर तलाशे जा रहे थे। अमेरिका के दो वैज्ञानिक कैटलिन कारिको और डू वीजमैन की मेहनत रंग लाई और कोरोना के खिलाफ एमआरएनए वैक्सीन तैयार करने में इनके शोध से मदद मिली। उनके इस अहम योगदान के लिए संयुक्त रूप से इस साल के चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है।
चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल देने वाले स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट की नोबेल समिति ने सोमवार को इसकी घोषणा की। समिति ने कहा, कारिको और वीजमैन ने आरएनए में न्यूक्लियोसाइड आधारित संशोधनों की अहम खोज की, जिससे एमआरएनए टीकों के विकास में मदद मिली।
नोबेल समिति के सचिव थॉमस पर्लमैन ने कहा कि उनके शोधकार्यों से यह समझ आया कि एमआरएनए और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के बीच संपर्क कैसे काम करता है। इसी वजह से मानवता पर आए सबसे बड़े खतरे को टालने के लिए तेजी से टीका विकसित करने में मदद मिली।
कारिको और वीजमैन ने क्या किया
एमआरएनए की जानकारी 1961 से मौजूद है। 1990 के दशक में इस तकनीक पर आधारित पहली फ्लू वैक्सीन बनाई गई. जिसका चूहों पर परीक्षण किया गया। इसमें पता चलता कि एमआरएनए को शरीर में इंजेक्ट करने से प्रतिरक्षा प्रणाली में भड़काऊ प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है। इस वजह से संदेश के मुताबिक प्रोटीन का निर्माण नहीं हो पाता। कारिको व वीजमैन ने आरएनए के निर्माण खंडों में छोटे संशोधन का पता लगाया, जिसने प्रतिरक्षा प्रणाली को भड़काए बिना प्रोटीन निर्माण कर पाता है।
क्या है एमआरएनए तकनीक
एमआरएनए असल में जेनेटिक कोड का एक छोटा हिस्सा है, जिसका इस्तेमाल कोशिकाओं को खास तरह का प्रोटीन बनाने का संदेश देने के लिए किया जाता है। जब शरीर में वायरस या बैक्टीरिया का संक्रमण होता है, तो वैक्सीन के रूप में एक संदेशवाहक आरएनए शरीर में भेजा जाता है, जिसके बाद शरीर वायरस के खिलाफ खास प्रोटीन बनाने लगता है। इस तरह हमारे इम्यून सिस्टम वह प्रोटीन मिल जाता है, जो बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी है और शरीर में संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी बनने लगती हैं।