संसद के मानसून सत्र में मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बयान दें, विपक्षी दल अपनी इस मांग पर अड़े हैं। सोमवार को संसद सत्र का तीसरा दिन था, लेकिन विपक्षी सांसदों का हंगामा चलता रहा। नतीजा, लोकसभा और राज्यसभा को मंगलवार सुबह तक स्थगित कर दिया गया। हालांकि, इस दौरान एक खास बात हुई। लोकसभा में जोरदार हंगामे के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, मैं इस पर सदन में चर्चा के लिए तैयार हूं। मैं विपक्ष से अनुरोध करता हूं कि इस मुद्दे पर चर्चा होने दें। यह महत्वपूर्ण है कि देश को इस संवेदनशील मामले पर सच्चाई पता चले।
राजनीतिक जानकारों ने इसे संसद में मणिपुर पर ‘मोदी-शाह’ का ‘रामबाण’ बताया है। अमित शाह कह रहे हैं कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं। अब विपक्ष के पास दो ही विकल्प हैं। एक वह झुक कर रामबाण के वार से बचे और चर्चा में भाग लें। दूसरा, विपक्षी दल सियासत में छाती ठोंक कर दोहरा जोखिम उठा लें। भाजपा ने तो अब पूरी तैयारी कर ली है कि वह लोगों के बीच जाकर बताएगी कि गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस व दूसरे विपक्षी दल, चर्चा से दूर भाग रहे हैं। ऐसे में विपक्षी दल, अपनी जिद पर अड़े रहते हैं तो उन्हें सियासत में जोखिम उठाने के लिए भी तैयार रहना होगा।
नियम 267 के तहत घंटों बहस चल सकती है
कांग्रेस पार्टी ने अमित शाह के बयान के बाद कहा, मणिपुर हिंसा पर संसद में प्रधानमंत्री मोदी संसद में आकर विस्तृत बयान दें। मणिपुर पर नियम 267 के तहत बहस हो। यदि नियम 267 के तहत चर्चा होगी तो मणिपुर पर मरहम लगाने का काम होगा। सभी दल मणिपुर हिंसा पर चर्चा चाहते हैं, मगर प्रधानमंत्री मोदी ही ऐसे व्यक्ति हैं, जो मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री मणिपुर को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के घोर कुप्रबंधन के कारण संसद में बयान देने और बहस करने से डर रहे हैं।
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल और लोकसभा सांसद गौरव गोगोई ने कहा, विपक्षी दल नियम 267 के तहत सदन में बहस चाहते हैं। लेकिन मोदी सरकार के मंत्री कहते हैं कि केवल छोटी अवधि की चर्चा होगी, दूसरे कहते हैं कि केवल आधे घंटे की चर्चा होगी। नियम 267 के तहत घंटों बहस चल सकती है, वोटिंग भी हो सकती है, विपक्षी दल यही चाहते हैं। पहले प्रधानमंत्री का विस्तृत बयान आना चाहिए और संसद में 267 के तहत बहस होनी चाहिए। मोदी सरकार और भाजपा मणिपुर पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी और जवाबदेही से भाग नहीं सकती।
मणिपुर पर जोखिम मोल लेना चाहता है विपक्ष
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को मानसून सत्र के तीसरे दिन सभापति जगदीप धनखड़ ने पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया है। वे राज्यसभा में दूसरे विपक्षी दलों के साथ मणिपुर मुद्दे को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। इसके बाद संजय सिंह ने संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के पास धरना शुरु कर दिया। दूसरी तरफ भाजपा ने अपने सांसदों को मणिपुर के मुद्दे पर लोगों के बीच जाने के लिए तैयार कर दिया है। इस बाबत पीएम मोदी एक-दो दिन में भाजपा संसदीय दल की बैठक ले सकते हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बैठक से पहले अपने सांसदों को बता दिया है कि वे मणिपुर हिंसा का सच लोगों को बताने के लिए तैयार रहें। लोगों को बताएं कि केंद्र सरकार, सदन में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष नहीं आना चाहता।
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, विपक्ष सदन में आकर विरोध तो कर रहा है, मगर वह चर्चा में भाग नहीं लेना चाहता। ऐसा पहली बार हो रहा है कि सत्ता पक्ष किसी मुद्दे पर चर्चा करना चाहता है, लेकिन विपक्ष उससे दूर भाग रहा है। सोमवार शाम को कांग्रेस पार्टी ने जो कुछ कहा है, उससे यही बात निकलकर सामने आ रही है कि विपक्ष, इस मामले में दोहरा जोखिम उठाना चाहता है। विपक्ष को लोगों को यह जवाब देना होगा कि जब सरकार, इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है तो विपक्ष, विरोध क्यों कर रहा है। लोगों को भाजपा की बात समझ में आ गई तो सियासत में यह विपक्ष के लिए डबल जोखिम का कारण बन सकती है।
कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों का इशारा
सांसद शक्ति सिंह गोहिल और गौरव गोगोई कहते हैं कि विपक्षी दल यही चाहते हैं कि पहले प्रधानमंत्री का विस्तृत बयान आना चाहिए। संसद में 267 के तहत बहस होनी चाहिए। मोदी सरकार और भाजपा मणिपुर पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी और जवाबदेही से भाग नहीं सकती। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, मानसून सत्र के तीसरे दिन भी संसद की कार्यवाही नहीं हो सकी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ‘इंडिया’ दलों की मणिपुर में तीन मई के बाद की स्थिति पर प्रधानमंत्री के विस्तृत बयान की मांग नहीं मान रही है। ‘इंडिया’ की स्पष्ट मांग है कि पहले प्रधानमंत्री सदन में बयान दें, उसके बाद इस पर चर्चा हो। प्रधानमंत्री सदन में बयान देने से आखिर क्यों भाग रहे हैं। मणिपुर से ज्यादा गंभीर विषय कोई नहीं हो सकता। विपक्षी दल दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इंसानियत के लिए चर्चा चाहते हैं, मगर भाजपा नियम 267 के तहत विस्तृत चर्चा नहीं चाहती है।
दूसरी ओर भाजपा नेताओं का कहना है, विपक्ष प्रधानमंत्री के बयान पर क्यों अड़ा है। केंद्रीय गृह मंत्री शाह उनके हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार हैं। हम लोगों को यह बात बताएंगे कि केंद्र सरकार, मणिपुर का सच बतानी चाहती है, लेकिन विपक्ष सुनने के लिए तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री मणिपुर हिंसा पर चुप रहे। जब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई, तब प्रधानमंत्री सदन के बाहर कुछ सेकंड के लिए मणिपुर पर बोले। उन्होंने कहा कि इंडिया के संसद सदस्य संजय सिंह ने कहा था कि पहले 267 पर न्याय करो। उन्होंने ना कोई कागज फाड़ा, ना टेबल पर चढ़े, ना ही उन्होंने कोई असंसदीय शब्द बोले, मगर उन्हें पूरे सत्र के लिए निष्कासित कर दिया गया। यह लोकतंत्र की हत्या है।
‘इंडिया’ गठबंधन तो तैयार हैं, मगर पीएम बयान दें
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि हम मणिपुर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार हैं। इंडिया गठबंधन की सभी पार्टियां कह रही हैं कि वे चर्चा के लिए तैयार हैं। ऐसा लग रहा है कि एक ही व्यक्ति चर्चा के लिए तैयार नहीं है। वे हैं प्रधानमंत्री मोदी। प्रधानमंत्री अपने मणिपुर के घोर कुप्रबंधन के कारण संसद में बयान देने और बहस से डर रहे हैं।
गोगोई ने कहा कि चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उत्तराखंड, गुजरात, त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदल दिए जाते हैं। मणिपुर में 82 दिनों से हिंसा हो रही है, महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं। मगर देश के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पर पूरा विश्वास है। जिस तरह से विपक्ष, इस मुद्दे पर एकजुट है, उसे देखकर नहीं लगता कि बुधवार को भी सदन की कार्यवाही चल पाएगी। दूसरी तरफ भाजपा ने अब विपक्ष को यह कह कर घेरना शुरु कर दिया है कि ये पार्टियां मणिपुर पर गंभीर नहीं हैं। केंद्र सरकार, उनके हर सवाल का जवाब देने को तैयार है, लेकिन विपक्षी दल चर्चा से दूर भाग रहे हैं। इसका मतलब है कि विपक्ष, मणिपुर की हिंसा पर राजनीति करना चाहता है।