Rahul Gandhi in Europe: जी20 के मौके पर राहुल का लोकतंत्र पर सवाल उठाना कितना सही? जानिए विश्लेषकों की राय

Rahul Gandhi in Europe: जी20 के मौके पर राहुल का लोकतंत्र पर सवाल उठाना कितना सही? जानिए विश्लेषकों की राय


यूरोप का दौरा कर रहे राहुल गांधी ने बेल्जियम में यह बयान दिया है कि भारत में संवैधानिक संस्थाओं पर हमला हुआ है। इस बयान के बाद वे एक बार फिर विवादों में आ गए हैं। विपक्ष उन्हें घेर रहा है। यह सवाल उठ रहा है कि जब भारत में भव्य अंदाज में जी20 सम्मेलन हो रहा है, तब क्या राहुल गांधी को विदेश जाकर ऐसी बात कहनी चाहिए थी? खबरों के खिलाड़ी की इस कड़ी में इसी मुद्दे पर चर्चा हुई। जानिए विश्लेषकों की राय… 

अवधेश कुमार: राहुल गांधी ने बिना सोचे समझे तो यह बात नहीं कही होगी। यह सुनियोजित है। अति खुद के लिए भी क्षतिकारक होती है। प्रधानमंत्री मोदी जब जनता के बीच जाते हैं तो विपक्ष पर हमला करते हैं, लेकिन विदेश में जाते हैं तो भारत के बारे में सकारात्मक बातें बोलते हैं। देश में निर्गुट सम्मेलन भी हो चुका है, लेकिन जी20 अलग है। इससे भारत दुनिया में ताकतवर देश के रूप में पेश हो रहा है। कांग्रेस का दुनिया में संपर्क टूट चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपना संपर्क स्थापित किया है। राहुल उनके समानांतर आना चाहते हैं। जहां तक जी20 की मेजबानी में होने वाले भोज की बात है तो खरगे जी को अगर निमंत्रण नहीं है तो भाजपा अध्यक्ष को भी न्योता नहीं है। मुख्यमंत्रियों के पास निमंत्रण भेजा गया है।

प्रेम कुमार: जी20 का कोई विरोध नहीं कर रहा है। जी20 आर्थिक संकटों से निपटने के लिए बना था, लेकिन यह अपने उद्देश्यों में नाकाम रहा है। अफ्रीका में भुखमरी से लोग मर रहे हैं, लेकिन जी20 से इस बारे में कोई प्रस्ताव नहीं आएगा। यह जीडीपी मापने वाला, अमीर देशों को व्यक्त करने वाला मंच है। राहुल गांधी ने जो कहा, उसे जी20 से नहीं जोड़ना चाहिए।

ऐसे में आलोचना तो जी20 की हो, भारत की क्यों आलोचना हो? इंदिरा गांधी ने विदेश जाकर एक बार कहा था कि मैं पहले भारतीय हूं। 

प्रेम कुमार: विदेश में राहुल गांधी भारत का ही प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। अगर यहां लोकतंत्र पर खतरा है तो दुनिया भारत से जिस लोकतंत्र को सीखेगी, वह सीख भी प्रभावित होगी। राहुल गांधी ने तो स्पष्ट किया है कि यह हमारे अंदर की लड़ाई है। उन्होंने किसी से मदद नहीं मांगी है। इसमें विवाद की जरूरत नहीं है। 

पूर्णिमा त्रिपाठी: हमें अच्छा लग रहा है कि जी20 यहां भव्य तरीके से हो रहा है, लेकिन राहुल गांधी की यात्रा पहले से तय होगी। उनसे वहां कोई सवाल पूछ रहा है तो वे उसे टाल तो नहीं सकते। जी20 हो रहा है तो राहुल गांधी सरकार के भक्त हो जाएं, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने सरकार की आलोचना की है, देश की आलोचना नहीं की। 2012 के जी20 सम्मेलन में ओबामा ने कहा था जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो दुनिया सुनती है। तब भी भारत का यह सम्मान था। 

विनोद अग्निहोत्री: हम इतने छुईमुई क्यों हो गए हैं? अगर लोकतांत्रिक संस्थाओं पर टिप्पणी कर देगा तो क्या लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा? इंदिरा गांधी ने भारत के बारे में तब ऐसा कहा था, जब दुनिया ग्लोबल विलेज नहीं थी। आज जब कोई कुछ भी बोले, सभी को उसी समय पता चल जाता है। सरकारों की आलोचना को देश की आलोचना नहीं कहा जा सकता। जब इंडिया इज इंदिरा कहा गया, वह गलत था। आज अगर एक नेता को देश मान लिया गया है तो ये भी गलत है। जहां तक जी20 की बात है तो 2008 की मंदी के बाद इसका जन्म हुआ। मेक्सिको में जी20 के कन्वेंशन सेंटर में सभी विश्व नेता थे। वहां नेता अकेले जा रहे थे। सिर्फ दो नेताओं को मेक्सिको के राष्ट्रपति रिसीव करने आए। पहले थे भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और दूसरे थे चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति।

राहुल के पास क्या बड़ी लकीर खींचने का मौका नहीं था? क्या जी20 अपने उद्देश्य से भटक गया है?

अवधेश कुमार: अगर राहुल गांधी के पास इतना विजन होता तो बात अलग होती। कांग्रेस में यह स्थापित तथ्य है कि एक ही परिवार का व्यक्ति पार्टी चलाएगा। राहुल गांधी ने देश के अंदर या बाहर अपनी राजनीतिक योग्यता और समझ को अब तक साबित नहीं किया है। कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं, जिनके पास ज्यादा योग्यता और समझ है। सबसे बड़े विपक्षी दल का सबसे बड़ा नेता अगर ऐसे बयान देता है तो यह गैरजिम्मेदाराना है। भारत ने जी20 के एजेंडे को बदलने की कोशिश की है। जी20 में जीडीपी के पैमाने को खत्म किया है। खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर स्थान मिला है। भारत कह रहा है कि गरीब देशों में निवेश करना होगा। राहुल गांधी यह कह सकते थे कि लोकतंत्र पर हमारा मतभेद है, लेकिन भारत का सभी का समर्थन करना चाहिए। मनमोहन सिंह ने जी20 की तारीफ की है। वे परिपक्व नेता हैं। राहुल गांधी भारत को लेकर हो रहे इस बड़े इतिहास निर्माण में सहभागी बनने से अपनी नकारात्मकता की वजह से चूक रहे हैं। 

विनोद अग्निहोत्री: जी20 सम्मेलन में एक जैसे शब्द सुनाई देते हैं। इस बार अफ्रीकी यूनियन को शामिल करने से अच्छा प्रयास हुआ है। यह भारत की बड़ी पहल है। राहुल गांधी विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं। मोदी सरकार के खिलाफ वे पहले दिन से मुखर हैं। राहुल निजी यात्रा पर गए हैं, वे सरकार के प्रतिनिधिमंडल में नहीं गए हैं। पुराने नेता भी निजी यात्राओं पर विदेश जाते थे, तो वे क्या कहते थे, यह भी खोजना चाहिए।

जी20 में पीएम मोदी की टेबल पर ‘इंडिया’ की जगह दिखा ‘भारत’ दिखा है। इसे किस तरह देखते हैं? 

अवधेश कुमार: भारत लिखने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत नहीं है। हजारों वर्षों से हम भारत शब्द सुनते आए हैं। हम ही लोगों में भारत को लेकर हीनभाव था। इंडिया को अलग, भारत को अलग माना जाता था। तात्कालिक रूप से यही संशोधन हो सकता है कि भारत दैट इज इंडिया हो जाए। भारत हिंदी नहीं है। देश की सभी भाषाओं में भारत वर्ष शब्द मिलता है। 

विनोद अग्निहोत्री: विपक्षी दलों को साधुवाद देना चाहिए क्योंकि इंडिया गठबंधन की वजह से भारत शब्द पर बात हो रही है। इतना ही भारत शब्द से प्रेम था तो तमाम योजनाएं इंडिया के नाम से क्यों आईं? पासपोर्ट में भी भारत गणराज्य लिखा होता है। इंदिरा गांधी ने भी राकेश शर्मा से पूछा था कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है। उन्होंने भी इंडिया शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था। तो भारत बनाम इंडिया की बहस नहीं होना चाहिए। अंग्रेजी में इंडिया कहा जाता है। सिकंदर सबसे पहले भारत आया। तब से इंडिया नाम का जिक्र है। ग्रीक इतिहास हमें इंडिया के रूप में ही जानता था। यह यूनानियों का दिया नाम है। जब देश का बंटवारा हुआ तो जिन्ना को भारत को इंडिया नाम दिए जाने से आपत्ति थी। आज भी पाकिस्तान के टीवी चैनलों में इंडिया को भारत कहा जाता है।

पूर्णिमा त्रिपाठी: मोदी जी को अचानक भारत शब्द से प्रेम हो गया है। क्या विपक्षी दलों की वजह से इस शब्द से प्रेम हुआ है। शायद सरकार इंडिया गठबंधन से घबरा गई है। अब तक तो स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और खेलो इंडिया जैसी योजनाओं में इंडिया शब्द ही इस्तेमाल हो रहा था। हालांकि, आम आदमी पार्टी ने अब इसकी आलोचना की है, लेकिन कांग्रेस कभी लिखती थी कि कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ। कांग्रेस ने इसी नारे से शब्द लेकर अपनी पार्टी का नाम बना लिया और कांग्रेस के नीचे से दरी खिसका दी। 

प्रेम कुमार: दोनों ही शब्द एकदूसरे के पूरक हैं। यह विवाद बना क्यों? यह इसलिए हुआ क्योंकि जहां-जहां इंडिया बोला जाता था, वहां-वहां भारत कहा जाने लगा। अब कह रहे हैं कि भारत पुराना शब्द है। तो पुराना शब्द तो पहले भी था। दुनिया हमें किस नाम से बोलेगी, यह सवाल है। यह विवाद ही अंदरूनी राजनीति के कारण शुरू हुआ है। इसका कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा है। देश के नाम के साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। यह कहा जाता है कि इंडिया शब्द गुलामी का प्रतीक है, जबकि भारत शब्द के साथ ऐसा नहीं है। अंग्रेजों के आने से पहले भी हमें इंडिया कहा जाता था।



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