लगातार हारी हुईं सीटें बन रही हैं चुनौती
2018 के चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण में सामने आता है कि पार्टी के लिए 93 सीटें बहुत ही चुनौतीपूर्ण हैं। इनमें से करीब 52 ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार रही है। जबकि 41 ऐसी सीट हैं जहां 2008 में पार्टी जीती, लेकिन 2013 और 2018 में पार्टी हार गई। पार्टी इन सीटों पर नए चेहरों को मौका देने पर विचार कर रही है। कमजोर सीटों पर पार्टी सेलिब्रिटीज और खिलाड़ियों को मौका दे सकती है। इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय और लोकप्रिय चेहरे भी यहां से चुनाव लड़ाए जा सकते हैं।
कांग्रेस को सबसे बड़ी दिक्कत ऐसी सीटों पर है, जहां पार्टी लगातार तीन बार से हार रही है। करीब 52 ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी तीन बार से ज्यादा हार रही है। इन सीटों पर उम्मीदवार चयन करने के लिए पार्टी को ज्यादा जोर लगाना पड़ रहा है। इन सीटों पर ऑब्जर्वर्स और स्क्रीनिंग कमेटी को भी जिताऊ उम्मीदवार तय करने में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है। कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी 2008 में जीती, लेकिन 2013 और 2018 में हार गई। पार्टी इन सीटों पर भी अध्ययन कर रही है। 41 सीटों पर कांग्रेस जातीय समीकरणों को फोकस करते हुए अलग से सर्वे कर रही है। ये सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी 2008 में जीती थी, लेकिन इसके बाद लगातार हारती गई। यहां जातीय समीकरण साधने के साथ युवा चेहरों पर पार्टी फोकस कर रही है, ताकि 2008 का इतिहास दोहराया जा सके।
मंत्रियों के भी कट सकते हैं टिकट
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए 105 उम्मीदवारों को दोबारा मौका दिया था। इनमें से 92 उम्मीदवार हार गए थे। 2013 के चुनाव में गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल रहे, 31 मंत्री सीट नहीं बचा पाए थे। हारने वाले मंत्रियों में डॉ. जितेंद्र सिंह, राजेंद्र पारीक, हेमाराम और हरजीराम बुरड़क, दुर्रु मियां, भरतसिंह, बीना काक, शांति धारीवाल, भंवरलाल मेघवाल, ब्रजकिशोर शर्मा, परसादीलाल, जैसे दिग्गज नेता शामिल थे। जबकि साल 2003 के चुनाव में सत्ता के खिलाफ जनता में पनपी नाराजगी के कारण गहलोत मंत्रिमंडल के 18 मंत्री हार गए थे। पार्टी का मानना है कि मंत्री रहकर चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर नेता फिर से नहीं जीत पाते हैं इसलिए उनकी जगह से नए चेहरों को मौका मिलना चाहिए।