उत्तर प्रदेश के बरेली को नाथ नगरी के नाम से जाना जाता है। शहर की चारों दिशाओं में भगवान भोलेनाथ के सात प्राचीन नाथ मंदिर हैं। इन नाथ मंदिरों से लाखों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। यूं तो वर्षभर नाथ मंदिरों में शिवभक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन सावन और शिवरात्रि पर इन मंदिरों की आभा देखते ही बनती है। हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर और कछला घाट से गंगाजल लाकर लाखों भक्त सावन में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि नाथ मंदिरों में दर्शन से भगवान भोलेनाथ भक्तों की मनोकामना को पूरा करते हैं। बरेली के सातों नाथ मंदिरों की अलग-अलग विशेषताएं और पौराणिक इतिहास हैं। सावन के पावन अवसर पर जानते हैं कि इन नाथ मंदिरों की महिमा के बारे में…
अलखनाथ मंदिर
किला क्षेत्र स्थित शहर का प्रसिद्ध मंदिर अलखनाथ यहां का प्राचीनतम शिवालय है। इसका सही समय तो नहीं मिलता, मगर कई हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। मंदिर के महंत बाबा कालू गिरि महाराज ने बताया कि यहां पहले बांस का जंगल हुआ करता था। तब एक बाबा आए थे, जिन्होंने यहां एक बरगद के नीचे कई वर्षों तक तपस्या कर धर्म की अलख जगाई थी। पास में ही शिवलिंग भी स्थापित था। बाद में इसी बरगद के नीचे उन्होंने समाधि ले ली। चूंकि बाबा ने यहां अलख जगाने का काम किया था, इसी लिए मंदिर का नाम अलख नाथ बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलखनाथ मंदिर एक सिद्धस्थल है। वर्तमान में शहर का यह सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।
बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर
शहर के प्रेमनगर स्थित बाबा त्रिवटी नाथ का मंदिर छह सौ वर्ष पुराना धर्मस्थल है। यहां महादेव स्वयं प्रकट शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर सेवा समिति के मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल ने बताया कि मान्यता के अनुसार अब से छह सौ वर्ष पूर्व यहां पर घना जंगल था। पशु चराने आया चरवाहा एक दिन यहां एक वट वृक्ष के नीचे सो गया। जहां उसे सपने में स्वयं महादेव ने दर्शन देकर बताया कि वह इस वट वृक्ष के नीचे विराजमान हैं। इस पर जब चरवाहे की आंख खुली तो वहां पर उसने विशाल शिवलिंग पाया। चरवाहा बेहद प्रसन्न हुआ। उसने शहर में जाकर लोगों को पूरी बात बताई। फिर भक्तों का आना जाना शुरू हो गया।
बाबा बनखंडी नाथ मंदिर
जोगी नवादा स्थित बाबा बनखंडी नाथ मंदिर की स्थापना राजा द्रुपद की पुत्री व पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने की थी। भोले बाबा का शिवलिंग बनाकर यहीं पूजा अर्चना करती थींं। द्वापर युग में मंदिर को मुस्लिम शासकों ने, कई बार आलमगीर औरंगजेब के सिपाहियों ने सैकड़ों हाथियों से शिवलिंग को जंजीरों से बांध कर नष्ट कराने की कोशिश की, परंतु शिवलिंग अपनी जगह से हिला तक नहीं और सारे हाथी मारे गए। मंदिर के संरक्षक हरिओम राठौर का कहना है कि ऐसा माना जाता है यह इलाका उस समय बनखंड क्षेत्र था, जिसके कारण यह मंदिर बनखंडी नाथ जी के नाम से कहलाया। यहां के महंत केदार गिरी भारती महाराज हैं।
बाबा धोपेश्वर नाथ मंदिर
कैंट के सदर बाजार स्थित बाबा धोपेश्वर नाथ मंदिर एक अलौकिक शक्ति स्थल है। इसका इतिहास पांच हजार वर्ष पुराना है। अर्थात महाभारत काल में जब पांडव, कौरव और भगवान श्री कृष्ण इस धरती पर विराजमान थे। महाभारत में पांडवों के एक गुरु ध्रूम ऋषि ने यहां तपस्या की थी और यहां पर अपने प्राण त्यागे थे। तत्पश्चात उस समय के लोगों ने यहां उनकी समाधि बना दी। उसी समाधि के ऊपर शिवलिंग की स्थापना की गई। मंदिर व्यवस्था कमेटी के सदस्य सतीश चंद मेहता ने बताया कि पहले इसका वर्णन धोमेश्वर नाथ के रूप मे मिलता है। बाद में धोपेश्वर नाथ के नाम के जाना गया। यहां के महंत शिवानंद गिरी गोस्वामी महाराज हैं।