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सुप्रीम कोर्ट ने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और आइंस्टीन के सापेक्षता के समीकरण को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका खारिज कर दी। शुक्रवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता का निजी तौर पर ये मानना है कि डार्विन और आइंस्टीन के वैज्ञानिक सिद्धांत गलत थे, तो सुप्रीम कोर्ट को इससे कोई लेना-देना नहीं है।
रिट याचिका के तहत नहीं उठा सकते ऐसे मुद्दे
न्यायमूर्ति कौल ने व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश हुए याचिकाकर्ता राज कुमार से कहा, अगर आपको विश्वास है, तो आप अपने यकीन का प्रचार कर सकते हैं। जस्टिस कौल ने कानूनी पहलुओं को समझाते हुए कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत वैज्ञानिक सिद्धांतों को सही या गलत ठहराने के सवाल को रिट याचिका के तहत नहीं उठाया जा सकता। इसके तहत मौलिक अधिकारों से जुड़े मुद्दों को उठाया जाता है।
वैज्ञानिक सिद्धांतों के खिलाफ तर्क, मंच की चाह
याचिकाकर्ता राज कुमार यह साबित करना चाहते थे कि आइंस्टीन के विशेष सापेक्षता के समीकरण (ई = एमसी 2) का सिद्धांत सही नहीं है। उन्होंने इंसानों के विकास को लेकर डार्विन के वैज्ञानिक सिद्धांतों को भी गलत ठहराया। याचिकाकर्ता ने कहा कि वैज्ञानिक सिद्धांतों को गलत ठहराने के लिए उनके पास अपने तर्क हैं। वे इन तर्कों को पेश करने के लिए एक मंच चाहते थे।
दो करोड़ लोगों की मौत का दावा
याचिकाकर्ता ने पीठ से कहा कि उसने स्कूल और कॉलेज में जो कुछ भी पढ़ा है, उसे अब एहसास हुआ कि वह गलत था। याचिकाकर्ता ने अपने समर्थन में तर्क पेश करते हुए दावा किया कि डार्विन के सिद्धांत को स्वीकार करते हुए दो करोड़ लोग मर गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल
दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, अगर आपको गलती का एहसास है तो फिर आप अपने सिद्धांत में सुधार करें…। जस्टिस कौल की खंडपीठ ने पूछा कि सुप्रीम कोर्ट को क्या करना चाहिए? अनुच्छेद 32 के तहत आपके मौलिक अधिकार का उल्लंघन कैसे हो रहा है?
सलाह मांगने पर क्या बोले न्यायमूर्ति?
याचिकाकर्ता ने खंडपीठ से पूछा कि उसे अपने मुद्दे को किस फोरम पर उठाना चाहिए। जवाब में जस्टिस कौल ने कहा, ’हमारे पास आपको यह बताने का कोई सलाहकार क्षेत्राधिकार नहीं है कि आपको कहां जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने कहा, उन्होंने जनहित याचिका दायर करने से पहले कुछ वकीलों की मदद ली थी। इस पर जस्टिस कौल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट यह नहीं कहेगा कि आप न्यूटन या आइंस्टीन को गलत साबित करें। उन्होंने पूछा, वह वकील कौन है, जिसने याचिका दायर की है?
आप खुद के सिद्धांत का प्रचार कर सकते हैं
पीठ ने कहा, आप कहते हैं कि आपने स्कूल में कुछ पढ़ा, आप विज्ञान के छात्र थे। अब आप कहते हैं कि वे सिद्धांत गलत हैं। यदि आप मानते हैं कि वे सिद्धांत गलत थे, तो सुप्रीम कोर्ट का इससे कोई लेना-देना नहीं है। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, आप अपना खुद का सिद्धांत बनाते हैं और उसे प्रतिपादित करते हैं। इसमें कोई परेशानी नहीं है। आपको लगता है कि लंबे समय से मौजूद दो सिद्धांत गलत हैं, तो आप अपने सिद्धांत का प्रचार कर सकते हैं।