समान नागरिक संहिता
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देश में एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। सरकार की ओर से गठित 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर आम जनता और धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों से विचार विमर्श और राय मांगने का कार्य शुरू कर दिया है। इस बीच, पिछले विधि आयोग की एक चेतावनी पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल पांच साल पहले, विधि आयोग ने कहा था कि सती प्रथा, बाल विवाह और तीन तलाक जैसी कई सामाजिक बुराइयों धार्मिक रीति-रिवाजों के रूप में जन्म लेती हैं। धर्म के रूप नें कानून के तहत उनकी सुरक्षा की मांग करना गंभीर मूर्खता होगी।
गौरतलब है कि 21वें विधि आयोग द्वारा अगस्त, 2018 में जारी ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ पर एक परामर्श पत्र भी जारी किया गया था। जिसमें ये तर्क दिए गए थे। अब वर्तमान विधि आयोग ने नए सिरे से इस मुद्दे पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की है। 22वें विधि आयोग ने एक सार्वजनिक सूचना में कहा है कि चूंकि इस विषय की प्रासंगिकता और महत्व साथ ही विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए पिछले परामर्श पत्र को जारी किए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। ऐसे में 22वें विधि आयोग ने इस विषय पर नए सिरे से विचार-विमर्श करना उचित समझा।
क्या कहा गया था पिछले परामर्श पत्र में
2018 में जारी परामर्श पत्र में कहा गया था कि धर्म की स्वतंत्रता और धर्म के सिर्फ पालन ही नहीं, बल्कि प्रचार करने के अधिकार को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में संरक्षित किया जाना चाहिए। इसमें यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कई सामाजिक बुराइयां धार्मिक रीति-रिवाजों के रूप में शरण ले लेती हैं। इसमें सती, गुलामी, देवदासी, दहेज, तीन तलाक, बाल विवाह या अन्य प्रथाएं और बुराइयां हो सकती हैं। ऐसे में ‘धर्म’ के रूप में कानून के तहत उनकी सुरक्षा की मांग करना एक गंभीर मूर्खता होगी।
परामर्श पत्र में कहा गया था कि ये प्रथाएं मानवाधिकारों के बुनियादी सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। साथ ही किसी भी धर्म के लिए ये आवश्यक हैं। धर्म के लिए आवश्यक होने पर भी किसी प्रथा को जारी रखने का कारण नहीं होना चाहिए, अगर यह भेदभावपूर्ण है।