ओम प्रकाश राजभर व संजय निषाद।
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सुभासपा हो या निषाद पार्टी, दोनों दल अपनी-अपनी जाति के हक से जुड़े मुद्दे उठाकर सियासत मजबूत करने में जुट गए हैं। एनडीए में शामिल होने के बाद से जहां सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हर फोरम पर राजभर जाति को एसटी का दर्जा दिलाने की मांग उठा रहे हैं, वहीं निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने भी अपनी जाति के आरक्षण का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया है।
माना जा रहा है कि इसके पीछे दोनों दल के नेताओं की चिंता इन मुद्दों के जरिये अपनी जाति पर पकड़ बनाए रखने की है। लोकसभा चुनाव में अपनी जातियों के वोटबैंक में हिस्सेदारी को लेकर दोनों नेताओं की अग्निपरीक्षा भी है। मौजूदा सियासत पिछड़ों और दलित वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूम रही है। यही वजह है कि भाजपा-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के अलावा सपा-बसपा में भी जातीय आधार वाली छोटी पार्टियों को अपने पाले में करने की होड़ मची है। छोटे दल भी अपनी अहमियत बढ़ाने के लिए ऐसे दलों का साथ पसंद कर रहे हैं।
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ओमप्रकाश राजभर, भर और राजभर जाति को एसटी में शामिल करने समेत जाति से जुड़े तमाम मुद्दों को जोरशोर से उठा रहे हैं। भाजपा के किसी बड़े नेता से शिष्टाचार मुलाकात के बहाने वे इन मुद्दों को जितनी शिद्दत से उठा रहे हैं, उससे कहीं अधिक वह इसका प्रचार भी कर रहे हैं। राज्य सरकार में मंत्री बनने वाले एनडीए के दूसरे घटक निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने भी मझवार और तुरैहा जाति को आरक्षण देने की मांग उठाना शुरू कर दिया है। उन्होंने हाल में ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर इन मुद्दों को फिर उठाया है। माना जा रहा है कि इसके पीछे दोनों नेताओं पर भाजपा नेतृत्व से किए गए दावे के मुताबिक चुनाव में प्रदर्शन का दबाव है।
मौका मिला तो परिवार को दी तरजीह
यह बात अलग है कि जब भी मौका मिला तो दोनों नेताओं ने अपने परिवार को ही तरजीह दी। संजय को मौका मिला तो उन्होंने खुद के सिंबल के बजाय भाजपा के सिंबल पर एक बेटे को सांसद तो दूसरे को विधायक बनवा लिया। इसी तरह 2017 में एनडीए के साथ रहे ओमप्रकाश राजभर भी सरकार में खुद मंत्री बने और बड़े बेटे को एक निगम का चेयरमैन बनवा लिया। अब लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों के कोटे की सीटों पर इनके बेटों के ही लड़ने की चर्चा है।