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– फोटो : अमर उजाला
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यमुना की बाढ़ ने दिल्ली में अपने दायरे को परिभाषित किया है। विशेषज्ञ इसे दिल्ली के लिए बड़ा सबक बता रहे हैं। उनका मानना है कि यमुना ने अपने बाढ़ क्षेत्र के साथ इसमें मौजूद नम भूमियों की पहचान की है। जहां तक पानी गया, वह यमुना का अपना घर है। बाढ़ उतरने के क्रम में इस वक्त दिखने वाले स्थानीय पौधे इस बात का संकेत दे रहे हैं कि पौधरोपण अवैज्ञानिक नहीं होना चाहिए। बाढ़ ने दिल्ली को अलर्ट किया है कि बारिश के पानी के प्रबंधन की कारगर रणनीति जरूरी है।
बाढ़ की चेतावनी, अब और हुआ अतिक्रमण तो दिल्ली की खैर नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि अमूमन उसी क्षेत्र को नदी मान लिया जाता है, जिससे होकर पानी निकलता है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के प्रो. राम कुमार के मुताबिक, नदी मुख्य चैनल तो है ही, इससे एकदम सटा रिपेरीयन जोन, जहां पानी तो नहीं होता, लेकिन नमी पूरी रहती है। सक्रिय बाढ़ क्षेत्र, जहां बाढ़ कम आए या ज्यादा, पानी पहुंचना ही है। पुराना बाढ़ क्षेत्र वह हिस्सा, जहां ज्यादा बाढ़ आने पर पानी पहुंच जाता है और बांध क्षेत्र भी इसमें शामिल है। इनमें से किसी एक या दूसरे में छेड़छाड़ नदी की सेहत पर असर डालती है।
सिटीजन फ्रंट फॉर वाटर के संयोजक एसए नकवी बताते हैं कि यमुना का पानी जहां तक गया है, वह यमुना का अपना घर है। दिल्ली में फिलहाल इसका दायरा 97 वर्ग किमी है। यह दिल्ली के कुल क्षेत्रफल का सात फीसदी है। इसमें से 16 वर्ग किमी में होकर पानी गुजरता है, जबकि 81 वर्ग किमी में बाकी सारे क्षेत्र आ जाते हैं। इसमें में बड़े हिस्से पर सरकारी व गैर-सरकारी अतिक्रमण हुआ है। फिर भी जितना बचा है वह दिल्ली काे बचाने के लिए पर्याप्त है। इस बार की बाढ़ का सबक यह भी है कि अगर अब किसी तरह की छेड़छाड़ की गई तो आने वाला वक्त दिल्ली के लिए शुभ नहीं है।
पौधरोपण के नाम पर बाहर के पौधों की भरमार, बाढ़ ने डुबोया
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ. फैयाज खुदसर बताते हैं कि पौधरोपण के विज्ञान के हिसाब से यमुना के रिपेरीयन जोन व सक्रिय बाढ़ क्षेत्र में बड़े पौधे नहीं लगने चाहिए। इनमें काम मूंज, कुश, झाऊ, नरकुल, पटेरा, पार्स पेलम और पार्स पेलेडियम का है। नम भूमियों के साथ मिलकर यह नदी की किडनी का काम करते हैं। बड़े पेड़ पक्षियों के बसेरे के लिए इक्का-दुक्का ही लगने चाहिए. इनकी सही जगह पुराना बाढ़ क्षेत्र व बांध है।
बाढ़ आने से पहले वजीराबाद से कालिंदी कुंज के बीच का सर्वे करने वाले व यमुना संसद के तकनीकी विशेषज्ञ संजय सिंह बताते हैं कि यमुना के फ्लड प्लेन में अवैज्ञानिक तरीके से पौधरोपण हुआ था। रिपेरीयन जोन तक में चिनार, चेरीब्लॉसम समेत दूसरे कई तरह के बाहरी पौधे दिखे, जबकि सक्रिय बाढ़ क्षेत्र में पीपल, अर्जुन, बांस व जामुन की भरमार है। लगाने का तरीका भी ऐसा कि उनका बचना बहुत मुश्किल है। उन पौधों का तो कोई नामो-निशान नहीं, जो यहां लगने चाहिए। बाढ़ उतरने के क्रम में अब यमुना में स्थानीय पौधे ही बचे दिख रहे हैं। बाहर के पौधों को बाढ़ बहा ले गई।
बारिश के पानी का प्रबंधन जरूरी
विशेषज्ञों की मानें तो इस बार बाढ़ के दौरान चार दिन तक दिल्ली में बारिश नहीं हुई। अगर कुदरत मेहरबान न होता तो यमुना में गिरने वाले नाले बंद होने से दिल्ली में कहर ढा देते। हर तरफ पानी भरा रहता। एसए नकवी की मानें तो दिल्ली ने अंदर की झीलों व तालाबों को तो खत्म ही कर दिया है, बरसाती नाले भी गायब हैं। 201 में से 44 नाले तो दस्तावेज में भी नहीं मिल रहे हैं। कुदरत इस बार ठीक था, लेकिन हर बार ऐसा मुमकिन नहीं है। ऐसे में बारिश के पानी के प्रबंधन पर दिल्ली को अलर्ट हो जाना चाहिए।