विपक्षी दलों के नेता
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
दूसरे से बड़ा दिखने की मनोवैज्ञानिक जंग में देश के दो अहम राजनीतिक गठबंधन एनडीए और इंडिया ने अपना कुनबा तो बढ़ा लिया है, मगर भविष्य में यही बढ़ा कुनबा इनके लिए बड़ी चुनौती खड़ी करने वाला है। बढ़े कुनबे के साथ ही दोनों ही गठबंधन के सामने अब अलग-अलग राज्यों में सीटों के बंटवारे की गुत्थी सुलझाना आसान नहीं होगा। भविष्य में सीट बंटवारे के सवाल पर दोनों की गठबंधन का आकार बड़ा या छोटा हो सकता है।
सीट बंटवारे की चुनौती से पार पाने का रास्ता विपक्षी गठबंधन के लिए जरा ज्यादा टेढ़ा है। हालांकि भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए में भी इस गुत्थी को सुलझाना आसान नहीं है। भाजपा को इसके लिए खासतौर से महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु, यूपी और हरियाणा में बड़ी माथापच्ची करनी होगी। दूसरी ओर कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन में बंगाल, यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, पंजाब, गुजरात व हरियाणा में सीट बंटवारे पर विवाद अभी से तय माना जा रहा है।
इंडिया की चुनौती
बंगलूरू की बैठक में जम्मू-कश्मीर के दोनों अहम मगर परस्पर विरोधी दल पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस शामिल हुए। यहां कांग्रेस का भी आधार है। सवाल है कि यहां सीट बंटवारे का फार्मूला क्या होगा? बैठक में आप भी पहुंची। सवाल है कि क्या कांग्रेस और आप के बीच दिल्ली, पंजाब, गुजरात और हरियाणा में सीट बंटवारे की गुत्थी सुलझ पाएगी। ममता का बंगाल में, अखिलेश का यूपी में, जदयू-राजद-वामदल का बिहार में कांग्रेस के लिए क्या रुख होगा? एनसीपी-शिवसेना में टूट के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। ऐसे में कांग्रेस यहां अधिक सीट पर दावेदारी करेगी।
कई और संकट
केरल में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ और एलडीएफ का साथ आना मुश्किल है। अगर दोनों दल केरल में अलग-अलग चुनाव लड़े और त्रिपुरा और बंगाल में इनके बीच समझौता हुआ तो इसका नकारात्मक संदेश जाएगा। यह फार्मूला बैठे-बिठाए भाजपा को एक बड़ा मुद्दा दे देगा। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सपा और टीएमसी ने कांग्रेस के लिए दिल बड़ा नहीं किया तो इसका असर भी गठबंधन की एकजुटता पर पड़ेगा।
भाजपा के लिए महाराष्ट्र-बिहार बड़ी चुनौती : महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना के एक धड़े के भाजपा के साथ आने और बिहार में भाजपा के कई छोटे दलों को साधने के बाद अब असली चुनौती सीट बंटवारे की है। महाराष्ट्र में भाजपा पिछली बार 25 व शिवसेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थीं। शिवसेना शिंदे गुट अब पुराने फार्मूले के आधार पर 23 सीटें चाहता है। इसी बीच एनसीपी के एक धड़े के साथ आने से भाजपा को या तो अपनी सीटें कम करनी होंगी या शिवसेना के हिस्से में कटौती करनी होगी। बिहार में लोजपा के दोनों धड़े पुराने फार्मूले के आधार पर छह-छह सीटें मांग रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा तीन की जगह पांच सीटें चाहते हैं। जीतनराम मांझी दो सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।
यूपी-तमिलनाडु में भी पेच
यूपी में इस बार भाजपा ने अपना दल के अलावा दो नए दलों निषाद पार्टी और ओमप्रकाश राजभर को जोड़ा है। निषाद पार्टी और राजभर दो-दो सीटें मांग रहे हैं। ऐसे में बीते दो चुनाव से दो सीटों पर लड़ कर दोनों सीटें जीतने वाले अपना दल की मांग बढ़ सकती है। अगर रालोद साथ आया तो भाजपा को अपने हिस्से की कुछ सीटें इन्हें भी देनी होंगी। तमिलनाडु में पिछली बार पांच सीटों पर लड़ने वाली भाजपा कम एक दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इसके लिए भाजपा के लिए अन्नाद्रमुक और दूसरे आधा दर्जन सहयोगियों से तालमेल बैठाना आसान नहीं होगा।
नाम बदलने से कुछ नहीं बदलता : प्रधान
विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया रखे जाने पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि नाम बदलने से कुछ नहीं बदलता है। यह नई बोतल में पुरानी शराब जैसा है। उन्होंने कहा कि नाम बदलने से ज्यादा इस असंगत गठबंधन को भारत, उसके लोगों और भारतीयता के प्रतीकों के बारे में अपनी मंशा और मानसिकता बदलने की जरूरत है। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि इंडिया के बैनर तले एकजुट हुए विपक्षी दलों के पास पीएम मोदी का मुकाबला करने के लिए कोई सर्वसम्मत उम्मीदवार नहीं है।
नीतीश ने कहा-इंडिया नाम से कोई नाराज नहीं
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को उन खबरों का खंडन किया कि वह नवगठित विपक्षी गठबंधन का संयोजक नहीं बनाए जाने को लेकर असंतुष्ट हैं और इसका नाम इंडिया रखे जाने से खुश नहीं हैं। एक महीने तक चलने वाले मलमास मेला का उद्घाटन करने के बाद उन्होंने दावा किया कि 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा का सफाया हो जाएगा।