स्वर्गीय कल्याण सिंह
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हिंदू हृदय सम्राट। हिंदुत्व के नायक। राम मंदिर आंदोलन के नायक। सरीखी अनगिनत उपाधियों से नवाजे गए स्व. कल्याण सिंह की पुण्यतिथि पर सोमवार को हिंदू गौरव दिवस मनाया जा रहा है। उनके सियासी-सामाजिक जीवन पर गौर करें तो अनगिनत ऐसे किस्से हैं, जिससे उनके कद का अंदाजा लगाया जा सकता है। छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत कर कल्याण सिंह उस दौर में जनसंघ से जुड़े, जब कांग्रेस का दौर था।
जनसंघ में राजनीति दुर्लभ माना जाता था। मगर पिछड़ी जाति में हिंदू छवि और सख्त निर्णय लेने वाले के रूप में उभरे नेता ने हार नहीं मानी। अतरौली सीट पर जीत दर्ज कर प्रदेश में जनसंघ के इकलौते विधायक का खिताब अपने नाम दर्ज किया। राम मंदिर आंदोलन के समय लिए अपने फैसले से अतरौली को देश दुनिया में पहचान दिलाई। समर्थकों का प्यार ऐसा था कि वे कल्याण सिंह के गांव की मिट्टी भी साथ ले जाते थे।
किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। लोगों के सुख दुख में शामिल होने के साथ-साथ लोगों को शाखाओं में शामिल कराने लगे। यहीं से उनकी राजनीतिक नींव रख गई। संसाधनों के अभाव के चलते बाइकों व साइकिलों से अलीगढ़ आना जाना होता था। मदार गेट स्थित शंकर धर्मशाला जो अब जर्जर भवन में तब्दील हो चुकी है। वहां जनसंघ का कार्यालय हुआ करता था। वे मढ़ौली से वहीं आया करते थे।
वहीं बैठकों में पार्टी को आगे बढ़ाने की रणनीति बना करती थी। उस दौर के अधिकांश जनसंघ के नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं। उन सभी का एक ही मकसद होता था कि पार्टी को कैसे मजबूत किया जाए और जिले से पार्टी का जनप्रतिनिधि बनाया जाए। इसी क्रम में वे सबसे पहले चुनाव हारे। मगर प्रयास और मेहनत के दम पर दूसरा चुनाव जीते। उसी दौर में उनके साथियों में ठा.इंद्रपाल सिंह, केके नवमान, डा.राम सिंह, नेम सिंह चौहान आदि विधायक बने।