पिछले हफ्ते आज ही के दिन हमास ने इस्राइल में हमला किया था। उसके बाद से इस्राइली सेना और हमास के बीच लगातर युद्ध छिड़ा हुआ है। इस बीच लोग इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भी चर्चा कर रहे हैं। लोगों को उनके बारे में जानने की दिलचस्पी हो रही है। तो आइये जानते हैं कि बेंजामिन नेतन्याहू के बारे में…
तेल अवीव में जन्में यरूशलम में पले-बढ़े
बेंजामिन नेतन्याहू का जन्म साल 1949 में तेल अवीव में हुआ था। उन्हें ‘बीबी’ नाम से भी बुलाया जाता है। नेतन्याहू इस्राइल के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिनका जन्म देश की स्थापना के बाद हुआ। इस्राइल की स्थापना 1948 में हुई थी। तेल अवीव में जन्में नेतन्याहू के युवावस्था के कुछ साल यरूशलम में गुजरे।
18 साल में सेना में हुए भर्ती
तीन भाई बहनों में दूसरे नंबर के नेतन्याहू ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1967 में देश की सेना ज्वाइन की थी। 18 साल की उम्र में सेना में शामिल होने वाले नेतन्याहू पांच साल तक खतरनाक सायरट मत्कल नाम की स्पेशल फोर्स के स्पेशल कमांडो रहे।
इस दौरान नेतन्याहू ने ऑपरेशन इनफर्नो, ऑपरेशन गिफ्ट और ऑपरेशन इसोटॉप सहित कई बड़े सैन्य अभियानों में भाग लिया। इसके अलावा उन्होंने कई वॉर ऑफ अट्रिशन, योम किप्पूर जैसे बड़े युद्धों में इस्राइली सेना की ओर से भाग लिया। किप्पूर युद्ध में अपनी वीरता के लिए उन्हें कैप्टन का तमगा मिल गया।
उस दौरान सेना की वर्दी में कमांडों के रूप में नेतन्याहू की आकर्षक तस्वीरें इस्राइल के युवाओं के बीच खासी लोकप्रिय हुआ करती थी। खासकर युवतियों के बीच शानदार कद काठी वाले नेतन्याहू का जबरदस्त क्रेज हुआ करता था।
सेना से अलग होकर चले गए अमेरिका
साल 1972 में सेना से अलग होने के बाद नेतन्याहू पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चले गए। नेतन्याहू ने यहां बॉस्टन स्थित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से आर्किटेक्चर में स्नातक और बिजनेस में मास्टर डिग्री हासिल की। इसके अलावा उन्होंने एमआईटी और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की भी पढ़ाई की।
भाई की सैन्य ऑपरेशन में गई थी जान
नेतन्याहू के बड़े भाई योनातन नेतन्याहू भी इस्राइली सेना में कैप्टन थे। योनातन दुनिया के सबसे खतरनाक मिशन ऑपरेशन एंटबी को अंजाम देने वाली टीम के कमांडर रहे थे। बता दें कि ऑपरेशन एंटबी या थंडरबोल्ट आतंवादियों द्वारा युगांडा में कैद इस्राइली लोगों को छुड़ाने के लिए साल 1976 में चलाया गया था। इसी मिशन के दौरान योनातन की जान चली गई थी। उनकी मौत के बाद उनके सम्मान में इस मिशन का नाम ऑपरेशन योनि रख दिया गया था।