मुरादाबाद दंगे के आराेपी शमीम अहमद
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मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 में शहर को दंगे की आग में झोंकने वाले डॉ. शमीम अहमद ने पहले भी हिंदू मुस्लिमों के बीच विवाद कराने की हर कोशिश की थी। आयोग की जांच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मई 1980 में शहर के एक मोहल्ले से अनुसूचित जाति की 18 वर्षीय एक लड़की मकान की सफाई करने गई थी।
आरोपियों ने युवती के साथ दुष्कर्म किया
इस दौरान उसे रियाज और उसके साथी अगवा कर ले गए थे। आरोपियों ने युवती के साथ दुष्कर्म किया था। इस मामले में रियाज और उसके साथियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। डॉ. शमीम इस घटना से तुरंत लाभ उठाने के लिए आगे आ गया था। उसने अपराधियों का पक्ष लिया था।
तब लड़की के जीवन को काफी खतरा हो गया था। लड़की के परिवार और संबंधियों ने उसका रिश्ता तय कर दिया था। रजमान माह में 27 जुलाई 1980 को शादी संपन्न हुई थी। बरात चढ़त के समय आरोपी और उसके समर्थकों ने हमला कर दिया था।
दूल्हे को भी अगवा करने का प्रयास
आरोपियों ने कहा था कि रोजा इफ्तार के समय तेज आवाज में बैंड और ढोल बजा रहे हैं। जबकि बारात रोजा इफ्तार से पहले ही निकल चुकी थी। इस घटना बराती घायल हुए थे। दूल्हे को भी अगवा करने का प्रयास किया गया था। इंदिरा चौक वाल्मीकि बस्ती में हमला किया गया था।
इस मामले में पुलिस ने केस दर्ज किया गया था। उस वक्त भी डॉ. शमीम ने मुस्लिम लोगों को उकसाने का प्रयास कियाथा। इसके बाद 5-6 जून 1980 की रात भूरे अली और कुछ अन्य लोगों के साथ लूटपाट की घटना हुई थी। उस वक्त भूरे अली दूध लेकर शहर आ रहे थे।
थाने ले जाते समय जावेद की मौत हुई थी
घटनास्थल पर ही जावेद समेत तीन लोग पकड़े गए थे। थाने ले जाते समय जावेद की मौत हो गई थी। डॉ.शमीम ने इस घटना का भी लाभ उठाने का प्रयास किया था। उसने अभियान चलाया था कि पुलिस की पिटाई थे जावेद की मौत हुई है।
प्रशासन की सख्ती के बावजूद जावेद के शव जुलूस निकाला था और इस मामले की मजिस्ट्रटी जांच कराई थी। वह मुस्लिम समाज को ये दिखाना चाहता था कि वह उनका हित लेता है। वाल्मीकि समाज के लोगों ने सफाई बंद कर दी थी। डॉ. शमीम वाल्मीकि समाज से बदला लेकर मुस्लिमों को खुश करना चाहता था।
पुलिस ने डॉ. शमीम पर कार्रवाई की
उसने सोचा कि इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। उसने वाल्मीकि समाज के लोगों के जानवरों को जहर दे दिया था। जिससे उनकी मौत हो गई थी। इस मामले में पुलिस ने डॉ. शमीम पर कार्रवाई की थी। ईद पर गड़बड़ी करने के लिए उसने एक दिन पहले ही वाल्मीकि समाज के लोगों के खिलाफ दो केस दर्ज करा दिए थे।
आरोप वाल्मीकि समाज पर लगाना था
एक केस मुगलपुरा और दूसरा केस कटघर में दर्ज किया गया था। जिसमें आरोप लगाया था कि उन्हें धमकी दी गई कि उन्हें देख लेंगे। जांच में दोनों केस झूठे पाए गए थे। इन केसों का मकसद था कि ईदगाह पर गड़बड़ी हो तो उसका आरोप वाल्मीकि समाज पर लगाया सके।
हर घटना में डॉ. शमीम और उसके समर्थकों का नाम सामने आ रहा था। उनका रुख और व्यवहार कठोर होता जा रहा था लेकिन इस घटना में उनका दांव उलटा पड़ रहा था। इस लिए डॉ. शमीम और उसके समर्थकों ने गडबड़ी के लिए ऐसा वक्त चुना था जब 70 हजार लोग एक साथ धार्मिक सभा में मौजूद थे।
डॉक्टर से विधायक बने थे डॉ. शमीम
दंगे के गुनहगार शहर के फैजगंज निवासी डॉ. शमीम अहमद डॉक्टर से विधायक बने थे। सियासत में आने से पहले वह जिला अस्पताल में बतौर डॉक्टर अपनी सेवाएं थी। वर्ष 1989 में नगर सीट से विधायक बने थे। यह चुनाव उन्होंने जनता दल के टिकट पर लड़ा था।
गाजियाबाद से लोकसभा का भी चुनाव लड़ा
बाद में उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देते हुए राष्ट्रीय एकीकरण परिषद के उपाध्यक्ष बनाया गया था। डेढ़ साल बाद दोबारा चुनाव हुआ तो उन्हें टिकट नहीं मिला था। डॉ. शमीम ने 1985 में मुस्लिम लीग के टिकट पर गाजियाबाद से लोकसभा का भी चुनाव लड़ा था। वर्ष 1999 में डॉ. शमीम का निधन हो गया था।