जी-20 के दौरान अपने देश की बहुआयामी सांस्कृति को इतनी खूबसूरती से पेश करने की परिकल्पना करने वाले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी मानते हैं कि इस आयोजन ने ये साबित कर दिया है कि भारत के लिए संस्कृति और संस्कार उतने ही अहम हैं जितना वाणिज्य और अर्थतंत्र। उनका मानना है कि वसुधैव कुटुम्बकम का जो संदेश भारत दुनिया को देना चाहता है कि पूरी पृथ्वी एक परिवार की तरह है, उसमें हम कामयाब हुए हैं। हमने अपनी संस्कृति के तत्वों, अपनी परंपरा और अपने दर्शन को तमाम देशों से आए मेहमानों तक पहुंचाने में कामयाबी पाई है। सच्चिदानंद जोशी से अमर उजाला की खास बातचीत-
सवाल- इस पूरे आयोजन के दौरान जिस तरह संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने देश की विविध संस्कृति की झलक पेश की, उसका दूरगामी असर क्या होने जा रहा है?
जी-20 की जो पूरी अवधारणा रही थी वह मूलत: आर्थिक समझौतों या आर्थिक या वाणिज्यिक मामलों पर ही केन्द्रित रही थी, लेकिन जौसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दृष्टिकोण है, उन्होंने इसके फलक को बहुत विस्तार दे दिया। अब उसमें संस्कृति और विरासत जैसी चीजें भी कहीं न कहीं बहुत महत्वपूर्ण चर्चा में आ गई हैं। तो ये जो दूरगामी प्रभाव है, वो ये है कि जो हमारी भारतीय परंपरा का मूल मंत्र है वह यह है कि हम सारी चीजों को भौतिक दृष्टि से ही नहीं देखते। हमारा एक भावनात्मक संबंध भी होता है। विश्व को जोड़ने में, विश्व को एक साथ रखने में भावनात्मक संबंध बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। और यही बात मेरी निगाह में जी 20 का संदेश है कि किस तरह हम विश्व को एक रख सकते हैं, भावनात्मक रूप से जोड़ सकते हैं। यही इसका बहुत बड़ा उदाहरण है।
सवाल- विदेशों से आए विशिष्ट मेहमानों ने जिस तरह यहां की संस्कृति को देखा, आपलोगों से बात हुई होगी तो उनकी क्या प्रतिक्रिया रही, उन्होंने कैसे पूरे आयोजन के इस सांस्कृतिक पक्ष को देखा?
जवाब- जो अलग अलग आयोजन हुए या जो प्रदर्शनी लगाई गई उनको लेकर उनकी बेहद सकारात्मक और कौतूहल भरी प्रतिक्रिया देखने को मिली। बहुत ही सकारात्मक प्रतिक्रियाएं थीं और वे सभी भारतीय संस्कृति को लेकर एक तरह से अचंभित थे कि इतनी सारी चीजें, इतनी विविधवर्णी जो संस्कृति है, यह देखना उनके लिए एक आश्चर्य की बात थी। क्योंकि विदेशों में भारत को लेकर, यहां की संस्कृति, परंपरा या इतिहास के बारे में जो नरेटिव गढ़ा जाता है, यहां आकर उन्हें ये सारे नरेटिव टूटते नजर आए। हमने उस नरेटिव को तोड़ने की पूरी कोशिश की कि हम दिखाएं तो सही कि हम क्या क्या हैं, क्या चीजें हम कर सकते हैं या कर रहे हैं, यह एक बहुत बड़ी बात है। फिर चाहे वह संगीत के कार्यक्रम हों या नृत्य के हों, प्रदर्शनियां हों, खानपान की व्यवस्था हो, साज सज्जा हो, आतिथ्य हो, इन सब चीजों में जहां भी भारतीय संस्कृति की झलक दिखी है उसने उन्हें निश्चित तौर पर प्रभावित किया है।
सवाल- इस आयोजन के जरिये जो हम संदेश देना चाहते थे दुनिया को, उसमें हम पूरी तरह कामयाब हुए हैं?
जवाब- मुझे तो लगता है कि हम कामयाब हुए हैं और हमने बहुत हद तक इस बात को पुरजोर ढंग से कहा है कि अंतत: जो सारी चीजें घूम फिर कर आती हैं वह हमारी संस्कृतिक विरासत या सांस्कृतिक संबंधों पर ही आती हैं। और ये प्रधानमंत्री जी ने शायद बहुत पहले से ये सोचा था इसीलिए हमने जी-20 का जो ध्येय वाक्य है वह वसुधैव कुटुम्बकम लिया। अपनी परंपरा से, शास्त्र से। वह एक बहुत बड़ी और दूरदर्शी सोच का नतीजा था। या जब हमने बात कही कि वन वर्ल्ड, वन फैमिली, वन फ्यूचर.. ये भी बात बहुत दूरदर्शी है। ये हमारे वेद में लिखा है। आप सोचिए कि जब यूएन के महासचिव को भी कहना पड़ा कि यह उपनिषदों का ही विस्तार है, उपनिषदों की ही बात है।
सवाल- भारत मंडपम् के बाहर जो खूबसूरत नटराज की मूर्ति लगी है, उसकी काफी चर्चा रही। इसकी परिकल्पना के पीछे क्या सोच रही है?
जवाब- भारत मंडपम के सामने क्या लगे जो भारत की संस्कृति को प्रदर्शित करे, भारत की सनातन परंपरा को प्रदर्शित करे। एक तरह से हमारी परंपरा सात हजार साल से भी पुरानी हमारी सभ्यता है। तो ऐसा क्या लगे जिसकी वैश्विक स्वीकृति हो और वह अपने आप में इस पूरे समभाव को दिखाती हो। हम जानते हैं कि नटराज की जो प्रतिमा है, वह एक कॉस्मिक एनर्जी को भी प्रदर्शित करती है और व्यक्ति और प्रकृति के बीच के संबंध और जीवन चक्र को भी प्रदर्शित करती है। उसकी जो लय है, जो रिद्म है, पूरी की पूरी मूर्ति में आप देखते हैं कि उसकी भंगिमा में एक रिद्म है, एक मोमेंटम है, एक गत्यात्मकता है, और इसका संबंध किसी धर्म विशेष से या विचार विशेष से नहीं है। यह प्रतिमा एक सार्वभौमिकता से भरी हुई है। इसीलिए यह प्रतीक सबके विचार में आया औऱ यह प्रतिमा बनाई गई।
सवाल- दिल्ली के इस मेगा आयोजन से पहले भी जी 20 के प्रतिनिधि महीनों से देश के अलग अलग शहरों में आयोजित कार्यक्रमों में जा रहे थे। वहां भी ऐसे सांस्कृति कार्यक्रम और विविधता की झलक उन्हें देखने को मिली। इसकी परिकल्पना के पीछे भी क्या ऐसा ही संदेश देना था?
जवाब- करीब 200 जगहों पर इससे पहले कार्यक्रम हुए और इसमें संस्कृति मंत्रालय की अहम भूमिका रही। यहां भी सांस्कृतिक गलियारे की बात है, जहां जहां भी कार्यक्रम हुए वे बहुत अलग ढंग से क्यूरेट किए गए। सिर्फ कार्यक्रम तक ही सीमित नहीं है, हर जगह आतिथ्य की जो परंपरा है, जो ट्रीटमेंट है, जिस भी सम्मेलन में जो भी अतिथि गए, वो सब अभिभूत हो कर लौटे।
सवाल- जिस तरह नए संसद भवन की इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने आपके नेतृत्व में इतनी खूबसूरत परिकल्पना की क्या इस बार संसद का जो विशेष सत्र बुलाया गया है, वह उसी नए संसद भवन में होगा, क्या वहां साज सज्जा और अपनी संस्कृति की विविधता को पेश करने का सारा काम पूरा हो चुका है?
जवाब- अभी तक तो यही सूचना है कि आगामी सत्र वहीं होगा। फिलहाल ये सत्र हो जाए उसके बाद वहां जो भी थोड़ा बहुत काम बाकी है, वह हो जाएगा।