सियासी गली: दोराहे पर खड़ी हैं ममता, कांग्रेस के कितने पास, कितने दूर?

सियासी गली: दोराहे पर खड़ी हैं ममता, कांग्रेस के कितने पास, कितने दूर?



राहुल गांधी- ममता बनर्जी
– फोटो : Amar Ujala

विस्तार


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी इन दिनों सियासत के दोराहे पर खड़ी हैं। एक तरफ बंगाल को कांग्रेस और भाजपा मुक्त बनाने की उनकी जिद है तो दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई में बनने वाले मोर्चा में शामिल होने की ख्वाहिश, बेहतर होगा इसे मजबूरी भी कह लें, भी है। अब यह देखना होगा कि ममता बनर्जी कांग्रेस के कितना पास और कितना दूर हैं?

कर्नाटक चुनाव का परिणाम आने से पहले के परिदृश्य पर अगर गौर करें तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि कांग्रेस और ममता बनर्जी के बीच फासला बहुत ज्यादा था। राहुल गांधी पर फिकरा कसते हुए उन्होंने कहा था कि भाजपा के लिए सबसे बड़ी टीआरपी तो राहुल गांधी ही हैं। कर्नाटक चुनाव का नतीजा आने के बाद परिदृश्य बहुत बदल गया। पहले तो ममता बनर्जी सवाल करते हुए कहती थीं कांग्रेस, कहां है कांग्रेस? 

उन्होंने गोवा के लुई फेलेरियो, त्रिपुरा के पीजुसी कांति विश्वास और मेघालय के मुकुल संगमा जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को तोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल कर लिया था। ये अपने साथ काफी समर्थक भी ले आए थे। तृणमूल कांग्रेस ने इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार भी खड़े किए थे। मजे की बात यह है विधानसभा चुनाव के बाद ये वापस भी चले गए थे।

राहुल गांधी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ममता बनर्जी ने भाजपा को फायदा पहुंचाया था। इसकी सफाई देते हुए ममता बनर्जी ने कहा था कि राष्ट्रीय दल की हैसियत बनाए रखने के लिए उन्होंने ऐसा किया था। पर हाल ही में एक उपचुनाव में जीत कर आए एकमात्र कांग्रेसी विधायक बायरन विश्वास को उन्होंने तृणमूल कांग्रेस में शामिल कर लिया और कांग्रेस विधानसभा में फिर शून्य हो गई। कांग्रेस के प्रवक्ता जयराम रमेश ने इसकी तीखी निंदा की थी।

ममता कांग्रेस के कितना पास कितना दूर?

जाहिर है कि ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस इन जख्मों को भुला पाएगी, जब कांग्रेस सहित विपक्षी सांसद मोदी सरकार का विरोध कर रहे थे तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद दूरी बना कर रखते थे। यह सच है की राजनीति में कोई स्थाई शत्रु या मित्र नहीं होता है। पर यह भी सच है कौन कितना फायदेमंद है इसे तो राजनीति की तराजू पर ही तौल कर देखा जाएगा।

इस नजरिए से अगर गौर करते हैं तो  साफ दिखता है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस एवं वाम मोर्चा और तृणमूल के बीच छत्तीस का आंकड़ा है।

क्या 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और वाम मोर्चा के नेता तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी के साथ मंच साझा कर पाएंगे? क्या कांग्रेस, वाम मोर्चा के नेताओं का साथ गंवाने का जोखिम उठा सकती है? क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी उन संसदीय सीटों को छोड़ने के लिए तैयार हो जाएंगी जिन-जिन पर भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है? बायरन विश्वास के हश्र के बाद यह उम्मीद नामुमकिन ही लगती है।



Source link

Facebook
Twitter
LinkedIn
Pinterest
Pocket
WhatsApp

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *